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________________ [4] ...................++++++++++++000000........................ महावीर प्रभु की दिन चर्या से अवगत कराते रहते थे। वैसे अनेक राजा-महाराजा प्रभु के प्रति अनन्य श्रद्धा भक्ति रखते थे। इतना ही नहीं आठ राजाओं ने तो प्रभु के चरणों में भागवती दीक्षा भी अंगीकार की। परन्तु कोणिक सम्राट द्वारा प्रभु महावीर की दैनिक विहार चर्या की जानकारी रखना अपने आप में एक बड़ी विशेषता रही। ___ प्रभु महावीर की शरीर सम्पदा का जितना विशद विवेचन प्रस्तुत सूत्र में मिलता है। वैसा विस्तृत वर्णन अन्य किसी आगम साहित्य में नहीं है। इसके साथ प्रभु महावीर के गुण सम्पन्न शिष्य समुदाय के साधक कैसे तेजस्वी, वर्चस्वी, यशस्वी, तपस्वी, ज्ञानी ध्यानी अनेक लब्धियों के धारक थे उसका भी सजीव वर्णन इसमें किया गया है। प्रभु महावीर का अपने शिष्य समुदाय के साथ चम्पानगरी में पधारना, कोणिक राजा को संदेशवाहक द्वारा सूचना मिलना, राजा द्वारा परोक्ष वंदना करना, देवों का आगमन, समवसरण की रचना, कोणिक राजा का सपरिवार प्रभु वंदना के लिए जाना, प्रभु द्वारा धर्मदेशना देना जिसमें श्रमणाचार और श्रावकाचार के सम्पूर्ण आचार मार्ग का प्ररूपण होना, परिषद् का विसर्जन आदि का । विशद् वर्णन प्रस्तुत सूत्र में किया गया है। यहाँ तक प्रथम समवसरण अध्ययन का निरूपण है। इसके पश्चात् दूसरे अध्ययन उपपात की शुरूआत है। जहाँ गणधर इन्द्रभूति परिषद् विसर्जन के बाद जीवों के उपपात सम्बन्धी अपनी अनेक जिज्ञासाएं प्रभु के चरणों में निवेदन की कि हे भगवन् ! जीवों के पाप कर्म का अनुबन्ध कैसे होता है.? किस प्रकार के आचार-विचार से जीव मरकर किस-किस योनि में उत्पन्न होते हैं ? उपपात के सम्बन्ध में गणधर गौतम ने बाल अज्ञानी, संकिलष्ट परिणामी, भद्र परिणामी, विभिन्न वानप्रस्थ तापसों, परिव्राजकों, प्रत्यनीकों, निह्नवों, आजीवक मत वालों, संज्ञी पंञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनि जीवों, अल्प आरम्भी मनष्यों, अनारम्भी श्रमणों आदि के बारे में प्रभ से पृच्छा की, जिसका प्रभ ने विशद समाधान फरमाया। इसके अलावा अम्बड परिव्राजक उसकी वीर्य लब्धि. वैक्रिय लब्धि, अवधिज्ञान उसके सात सौ शिष्यों, उनके द्वारा बिना आज्ञा पानी ग्रहण नहीं करने, सभी के द्वारा संथारा ग्रहण करने, उनके उपपात की विस्तृत चर्चा उस सूत्र में की गई है। साथ ही केवली समुद्घात करने के कारण, उसका स्वरूप, सिद्धों का स्वरूप, इनका परिवास, सिद्ध-शिला के विभिन्न नाम एवं उनके स्वरूप का विस्तृत सजीव दिग्दर्शन प्रस्तुत सूत्र में किया गया है। निष्कर्षतः प्रस्तुत सूत्र अपने आप में बहुत ही महत्त्वपूर्ण सामग्री संजोए है। नगर, चैत्य, राजा, रानियाँ, प्रभु की शरीर सम्पदा, शिष्य वर्ग की विशेषताएं, समवसरण की रचना, धर्म देशना, उपपात आदि का जो जीवत्व चित्रण प्रस्तुत आगम में है। वह अन्य आगमों के लिए आधार भूत है। विषय वस्तु के साथ इसकी भाषा सरल एवं रोचक है ताकि सामान्य पाठक भी इसे आसानी से समझ सके। सामान्य जानकारी के लिए भी प्रस्तुत सूत्र बहुत उपयोगी है। ___संघ द्वारा इस सूत्र का प्रकाशन सन् १९६३ में यानी लगभग ३५ वर्ष पूर्व हुआ था। जिसका अनुवाद आत्मार्थी पण्डित मुनि श्री उमेशमुनि जी म. सा. "अणु" ने किया था। जिसमें मूल पाठ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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