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________________ ___ . निर्ग्रन्थों का तप ........... इन प्रतिमाओं को अंगीकार करने की योग्यता इस प्रकार बतलाई गई है यथा - वज्रऋषभ-नाराच संहनन, ऋषभ-नाराच संहनन, नाराच-संहनन ये तीन संहनन, बीस वर्ष की संयम पर्याय, २९ वर्ष की उम्र तथा जघन्य नववें पूर्व की तीसरी आचार वस्तु का ज्ञान होना आवश्यक है, अनेक प्रकार की साधनाएँ और अभ्यास प्रतिमा धारण करने के पहले किए जाते हैं। उनमें उत्तीर्ण होने पर ही प्रतिमा धारण करने की आज्ञा दी जाती है। गोचरी के नियम भी बड़े कठिन हैं, इसलिए वर्तमान समय में इन भिक्षु प्रतिमाओं का आराधन नहीं किया जा सकता है अतएव अभी इनका विच्छेद माना गया है। सत्त-सत्तमियं भिक्खुपडिमं, अट्ठ-अट्टमियं भिक्खुपडिमं, णव-णवमियं भिक्खुपडिमं, दस-दसमियं भिक्खुपडिमं।खुड्डियं मोय-पडिमं पडिवण्णा। महल्लियं मोयपडिमं पडिवण्णा। जवमझं चंदपडिमं पडिवण्णा। वइर (वज) मझं चंदपडिमं पडिवण्णा। ___ भावार्थ - कई निर्ग्रन्थ सप्त-सप्तमिका भिक्षु प्रतिमा-सात-सात दिन के सात दिन-समूहों की साधु की प्रतिज्ञा, अष्ट-अष्टमिका-आठ-आठ दिन के आठ दिन समूहों की भिक्षु-प्रतिमा, नवनवमिका भिक्षुप्रतिमा, दशदशमिका भिक्षुप्रतिमा, क्षुल्लक मोक प्रतिमा के धारक, महामोक प्रतिमा के धारक, यव-मध्य-चन्द्र प्रतिमा के धारक और वज्र-मध्य चन्द्र प्रतिमा के धारक थे। ___ विवेचन - सप्त सप्तमिका भिक्षु प्रतिमा - यह ४९ दिन की प्रतिमा है। सात-सात दिन के सात सप्तक (वर्ग)। पहले सप्तक में पहले दिन एक-एक दत्ति अन्न-पानी एवं क्रमशः सातवें दिन सातसात दत्ति अन्न-पानी के ग्रहण की प्रतिज्ञा। इसी प्रकार शेष छह सप्तकों में भी। अथवा पहले सप्तक में प्रति दिन एक-एक दत्ति अन्न-पानी एवं क्रमश: सातवें सप्तक में प्रति दिन सात-सात दत्ति अन्न-पानी के ग्रहण की प्रतिज्ञा। दूसरा विधान अन्तगड सूत्र के मूलपाठ के अनुसार है। इसी प्रकार आगे अष्टअष्टमिका, नवनवमिका और दशदशमिका में भी समझ लेना चाहिए। . . इसी प्रकार अष्टअष्टमिका, नवनवमिका और दशदशमिका भिक्षु प्रतिमा में क्रमशः ८ अष्टक, ९ नवक और १० दशक में विभाजित ६४, ८१ और १०० दिन होते हैं। आहार-पानी की दत्तियों में पूर्ववत् वृद्धि की जाती है। दूसरी वांचना में भद्रा, सुभद्रा, महाभद्रा, सर्वतोभद्रा और भद्रोत्तर प्रतिमा ऐसे नाम भी मिलते हैं। लघुमोक प्रतिमा - प्रस्रवण सम्बन्धी अभिग्रह द्रव्य की अपेक्षा-नियमानुकूल हो तो प्रस्रवण की दिन में अप्रतिष्ठापना, क्षेत्र की अपेक्षा ग्रामादि से बाहर, काल की अपेक्षा-शीत या ग्रीष्म में आहार करके करे तो चतुर्दशभक्त से और आहार किये बिना करे तो षोडशभक्त से पूर्ण होती है और भाव की अपेक्षा-देवता, मनुष्य और तिर्यंच सम्बन्धी उपसर्गों को समभाव पूर्वक सहन करना, उपसर्ग सहना। । इसी प्रकार महामोक प्रतिमा भी की जाती है। अन्तर इतना ही है कि यह षोडश भक्त से या अष्टादश भक्त से पूर्ण होती है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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