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________________ धर्म सन्देशवाहक ३१ .................................... .................. कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्प-वेसाई मंगलाई वत्थाई पवर-परिहिए अप्पमहग्या-भरणा-लंकिय-सरीरे, सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ। कठिन शब्दार्थ - हट्ठतुट्ठ - हष्टतुष्ट-हष्टतुष्टोऽतीव तुष्टः। अथवा हृष्टो नाम विस्ममापन्नो यथा अहो भगवानास्ते इति । तुष्टस्तोषं कृतवान् यथा भव्यमभूत् यन्मया भगवानवलोकितः। __ अर्थ - हृष्टतुष्ट दोनों शब्दों का सम्मिलित अर्थ है - अन्त्यन्त सन्तुष्ट हुआ अथवा हृष्ट का अर्थ है आश्चर्य चकित हुआ कि भगवान् यहाँ विराजते हैं और तुष्ट का अर्थ सन्तुष्ट हुआ कि-मैंने भगवान् के दर्शन किये। भावार्थ- तब भगवान की प्रवृत्ति के निवेदक उस परुष ने. यह बात जानकर हर्षित या विस्मित और संतुष्ट चित्त, आनंदित- किञ्चित् मुख-सौम्यता आदि भावों से समृद्ध, मन में प्रीति से युक्त, परम सुन्दर मानसिक भावों से सम्पन्न और हर्षावेश से विकसित हृदयवाला होकर, स्नान, बलिकर्म, कौतुक-मंगल और प्रायश्चित्त करने के बाद, स्नान से शुद्ध बने हुए शरीर पर, मंगल वस्त्रों के वेश को सुन्दर ढंग से • पहनाकर थोड़े भार वाले बहुमूल्य आभूषणों से शरीर को सजाया। फिर वह अपने घर से बाहर निकला। विवेचन - मूल पाठ में 'कयबलिकम्मे' शब्द आया है। इस शब्द के अर्थ में मतभेद है - टीकाकार इसका अर्थ इस प्रकार करते हैं - 'कृतबलिकर्मन्-कृतं निष्पादितं स्नानानन्तरं बलिकर्म स्वगृहदेवतानां पूजा येन स कृत बलिकर्मा।' . अर्थ - स्नान करने के बाद अपने घर के देवता की पूजा करना किन्तु यह अर्थ मूलपाठ के अनुसार नहीं है। क्योंकि आगमों में जहाँ पर -स्नान का पूरा वर्णन यथा तेल मालिश करना, उबट्टन करना आदि है। वहाँ पर 'बलिकर्म' शब्द का प्रयोग नहीं है और जहाँ स्नान का पूरा वर्णन नहीं है वहाँ पूरा वर्णन बताने के लिये 'बलिकर्म' शब्द का प्रयोग हुआ है जैसे कि - जहाँ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का पूरा वर्णन दिया है वहाँ पर णमोत्थुणं का पूरा पाठ दिया गया है और जहाँ वर्णन पूरा नहीं दिया गया है वहाँ "समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं।"'जाव' शब्द से णमोत्थुणं का पूरा पाठ लिया गया है। इसी प्रकार 'बलिकर्म' शब्द से स्नान सम्बन्धी पूरा पाठ लिया गया है। ज्ञाताधर्म कथाङ्ग सूत्र के दूसरे अध्ययन में धन्ना सार्थवाह की स्त्री भद्रा का पुत्र की इच्छा से नाग, भूत, यक्ष के पूजन का वर्णन है। उसमें नगर के बाहर उद्यान में पुष्करणी में स्नान करने का उल्लेख है। ज्ञातासूत्र के आठवें अध्ययन में मल्लिकुमारी के पिता के पगवन्दन के वर्णन में तथा छह राजाओं को प्रतिबोध देने के वर्णन में भी यह पद है। इसी प्रकार ज्ञातासूत्र के सोलहवें अध्ययन द्रौपदी के वर्णन में, भगवती सूत्र शतक ९ उद्देशक ३३ में देवानंदा के वर्णन में, जमाली के वर्णन में, भगवती सूत्र शतक ७ उद्देशक ९ में वरुण नाग-नतुआ श्रावक के वर्णन में भी 'बलिकर्म' शब्द का प्रयोग हुआ है किन्तु वहाँ कोई गृह देवता नहीं है। राजप्रश्नीय' सूत्र में राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण के प्रश्नोत्तर के प्रसङ्ग में कठियारे का जंगल में स्नान करने के वर्णन में 'बलिकर्म' शब्द का प्रयोग हुआ है। वहाँ उसका कोई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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