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शिख नख वर्णन
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अणुलोम-वाउवेगे, कंकग्गहणी, कवोय-परिणामे, सउणि-पोस-पिटुंतरोरु-परिणए, पउमुप्पल गंध-सरिस-णिस्सास-सुरभि-बयणे, छवी णिरायंक-उत्तम-पसत्थ-अइसेय-णिरुवम-तले जल्ल-मल्ल-कलंक सेय-रय-दोस वज्जिय-सरीर-णिरुवलेवे छाया-उज्जोइयंग-मंगे।
भावार्थ - भगवान् के शरीर की ऊँचाई सात हाथ की थी। आकार समचौरस संस्थान-उचित और श्रेष्ठ माप से युक्त-सुन्दर था। उनकी हड्डियों की संयोजना अत्यन्त मजबूत थी। अतः सौन्दर्य और शक्ति का सुन्दर संयोग हुआ था। शरीर-स्थित वायु का वेग अनुकूल था। कंकपक्षी के समान गुदाशय था अर्थात् मलोत्सर्ग-क्रिया में कोई खराबी नहीं थी या मलोत्सर्ग स्थान के अवयव नीरोग थे। कबूतर के आहार-परिणमन की शक्ति के समान पाचन शक्ति थी। पक्षियों के समान अपान-देश निर्लेप रहता था। पीठ, अन्तर-पीठ और पेट के बीच के दोनों तरफ के हिस्से-पार्श्व और जंघाएँ विशिष्ट परिणाम वाली थी अर्थात् सुन्दर थीं। पद्म कमल या 'पद्म' नामक गन्ध द्रव्य और उत्पल-नील कमल या 'उत्पलकुष्ठ' नामक गंध द्रव्य की सुगन्ध के समान नि:श्वास से सुरभित प्रभु का मुख था! उनकी चमड़ी कोमल और सुन्दर थी। रोग से रहित, उत्तम, शुभ, अति सफेद और अनुपम प्रभु की देह का मांस था। अतः जल्ल-कठिन मैल, मल्ल-अल्प प्रयत्न से छूटने वाला मैल, कलङ्क-दाग, पसीने और रज के दोष से रहित भगवान् का शरीर था-उस पर मैल जम ही नहीं सकता था। अतः अंग-अंग उज्ज्वल कान्ति से प्रकाशमान् थे।
.. शिख नख वर्णन घण-णिचिय-सुबद्ध-लक्खणुण्णय-कूडागार-णिभ-पिंडि-अग्ग सिरए, सामलि-बोंड-घण-णिचियच्छोडिय-मिउ-विसय-पसत्थ-सुहुम-लक्खण-सुगंध-सुंदरभुयमोयग-भिंग-णिल-कज्जल-पहिट्ठ-भमर-गण-णिद्ध णिकुरंब-णिचिय-कुंचियपयाहिणावत्त-मुद्ध-सिरए दालिम-पुष्फ-प्पगास-तवणिज-सरिस-णिम्मल-सुणिद्धकेसंत-केसभूमी। १७. भावार्थ - अत्यन्त ठोस या सघन, स्नायुओं से अच्छी तरह से बंधा हुआ, श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त, पर्वत के शिखर के समान आकार वाला और पत्थर की गोल पिण्डी के समान भगवान् का शिर था। सेमल वृक्ष के फल-जो कि रूई से ठोंस भरा हुआ हो, उसके फटे हुए अंश से रूई बाहर निकल आई हो- उसके समान कोमल, सुलझे हुए, स्वच्छ और चमकीले या पतले-सूक्ष्म, लक्षणयुक्त सुगंधित, सुन्दर, भुजमोचक रत्न, शृंगकीट, नील-विकार, काजल और अत्यंत हर्षित भौरे के समान काले और लटों के समूह से एकत्रित धुंघराले छल्लेदार बाल-प्रदक्षिणावर्त शिर पर थे। केश के समीप में केश के
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