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________________ १६ उववाइय सुत्त शिलापट्टक वर्णन ५ - तस्स णं असोगवर पायवस्स हेट्ठा ईसिं खंध- समल्लीणे एत्थ णं महं एगे पुढवि-सिलापट्टए पण्णत्ते । विखंभायाम-उस्सेह-सुप्पमाणे, किण्हे (अंजणग-घण कुवलयहलधरकोसेज्जागास केस कज्जल कक्के यणिंदणील-अयसि - कुसुमप्यगासे भिंगंजण सिंगभेय-रिट्ठग-णीलगुलिय-गवल-अग- भमर- निकुरंबभूए जम्बूफलअसण- कुसुम - बंधण - णीलुप्पल-पत्त- णिकर - मर-गय- आसासग-णयणकीयरासिवण्णे णिद्धे रूवगपडिरूव-दरिसणिजे मुत्ता - जाल - खइयंतकम्मे । ) अंजण घाणकिवाण - कुवलय- हलधर-कोसेज्जागास - केस - कज्जलंगी - खंजण- सिंगभेद-रिट्ठयजंबूफल - असणक-सणबंधण - णीलुप्पल-पत्त- णिकर- अयसि - कुसुम-प्पगासे मरगयमसार - कलित्तणयण-कीय-रासिवण्णे, णिद्धघणे अट्ठसिरे आयंसय-तलोवमे सुरम्मे ईहामिय-उसभ- तुरग-र-मगर- विहग-वालग-किण्णर-रुरु- सरभ- चमर-कुंजरवणलय-पउम-लय-भत्तिचित्ते, आईगंग- रूय बूरणवणीय- तूल-फरिसे सीहासणसंठिए, पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे । कठिन शब्दार्थ - ईसिं - ईषत् - थोडा, खंधसमल्लीणे- स्कन्ध के पास, विखंभ - विष्कम्भमोटा, आयाम - लम्बा, उस्सेह- ऊँचा, हलधर बलदेव, कोसेज्ज - वस्त्र, मरगय - मरकत मणि, मसारचिकना बनाने वाला अर्थात् कसौटी पत्थर, णयणकीय आँख की कीकी, अट्ठसिरे अष्टकोण, आयंसतलोयमे - कांच के तले के समान, ईहामिय- ईहामृग-भेडिया, वालग - जंगली सर्प, उसभ - ऋषभ - बैल, तुरग - घोडा । ' भावार्थ- वहाँ उस श्रेष्ठ अशोक वृक्ष के नीचे, उसके थड़ के कुछ समीप पृथ्वी का एक बड़ा शिलापट्टक था। उसकी लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई उत्तम प्रमाण से युक्त थी। वह काला था। अञ्जन, मेघ, कृपाण, नीलकमल, बलदेव के वस्त्र, आकाश, केश, काजल के घर, काजली, सींग के भीतरी हिस्से, रिष्टक रत्न, जाम्बूफल, बीयक नाम की वनस्पति, सन के फूल के डंठल, नीलकमल के पत्तों के समूह और अलसी के फूल के समान उसकी प्रभा थी और मरकत, इन्द्रनील मणि, कटित्र - एक प्रकार के चमड़े या कमर पर बांधने के एक जात के चमड़े के कवच और आँखों की तारा की राशि के समान वर्ण था। वह अति स्निग्ध, अष्टकोण, दर्पण के तले के समान चमकीला और सुरम्य था। ईहामृग, वृषभ, अश्व, मनुष्य, मगर, पक्षी, सर्प, किन्नर, रुरु, सरभ - अष्टापद, चमर, हाथी, वनलता और पद्मलता के भित्तिचित्रों से युक्त था। उसका स्पर्श आजीनक- मृगचर्म या सुकोमल चर्मवस्त्र, रूई, बूर, मक्खन Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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