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________________ केवलि समुद्घात का कारण १८३ उत्तर - कुछ लोग ऐसा कह देते हैं कि, केवली समुद्घात स्वाभाविक हो जाती है किन्तु यह कथन आगम सम्मत नहीं है। क्योंकि ठाणांग सूत्र के आठवें ठाणे में और समवायांग सूत्र के आठवें समवाय में तथा पण्णवणा सूत्र आदि दूसरे आगमों में कहा है- 'पढमे समए दंडं करेइ' अर्थात्-केवली भगवान् पहले समय में आत्म प्रदेशों को चौदह राजू परिमाण लंबाई में दंड की तरह दंड कर देते हैं। दूसरे समय में कपाट कर देते हैं, तीसरे समय में मंथान के समान कर देते हैं और चौथे समय में सम्पूर्ण लोक को भर देते हैं और इसी उलटे क्रम से वापिस प्रतिसंहरण कर लेते हैं। यहाँ मूल पाठ में करेइ' शब्द दिया है जिसका अर्थ होता है-करते हैं, किन्तु 'भवइ' अर्थात् स्वाभाविक हो जाती है ऐसा शब्द नहीं दिया है। निष्कर्ष यह है कि केवली भगवान् केवली समुद्घात जान बूझ कर करते हैं। प्रश्न - केवली समुद्घात किसे कहते हैं ? उत्तर - अर्न्तमुहूर्त में मोक्ष प्राप्त करने वाले केवली भगवान् के समुद्घात को केवली समुद्घात कहते हैं, वह वेदनीय नाम और गोत्र कर्म को विषय करता है। प्रश्न-क्या सभी केवली भगवान् केवली समुद्घात करते हैं ? उत्तर - नहीं, सभी केवली भगवान् केवली समुद्घात नहीं करते हैं, किन्तु जिस केवली को छह महीने या छह महीने से कम आयुष्य बाकी रहते केवल ज्ञान होता है, वे केवली समुद्घात करते हैं। इस विषय में पूज्य बहुश्रुत महापुरुषों की धारणा तो इस प्रकार है कि-उन केवली भगवन्तों में से कुछ केवली भगवन्त् समुद्घात करते हैं और कुछ नहीं करते हैं। क्योंकि अन्तर्मुहूर्त में मोक्ष प्राप्त करने वाले केवली जिनके वेदनीय, नाम और गोत्र कर्म की स्थिति तो अधिक है और आयु कर्म की स्थिति थोड़ी रह गई है, वे केवली वेदनीय आदि कर्मों की स्थिति को आयु कर्म की स्थिति के बराबर करने के लिए केवली समुद्घात करते हैं। - गोयमा! केवलीणंचत्तारिकम्मंसाअपलिक्खीणाअवेइया अणिजिण्णा भवंति। तंजहा-वेयणिजं आउयंणामंगोत्तं।सब्बबहुए से वेयणिजे कम्मे भवइ। सव्वत्थोवे से आउए कम्मे भवइ।विसमं समं करेइ बंधणेहिं ठिईहि याविसमसमकरणयाए बंधणेहिं ठिईहि य एवं खलु केवली समोहणंति। एवं खलु केवली समुग्घायं गच्छंति। भावार्थ - हे गौतम ! केवलियों के चार कर्माश सम्पूर्णतः क्षीण नहीं होते हैं, वेदित नहीं होते हैं, निर्जरित नहीं होते हैं वे चार कर्म ये हैं। जैसे-वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र। सबसे अधिक वेदनीय कर्म होता है और सबसे कम आयुष्य कर्म होता है। बन्धन-प्रदेश बन्ध और अनुभाग बन्ध और स्थिति से विषम उन कर्मों को सम करते हैं। इस प्रकार केवली विषम कर्मों को सम करने के लिए समुद्घात करते हैंसमुद्घात को प्राप्त करते हैं। सव्वे विणं भंते ! केवली समुग्घायं गच्छंति ? - णो इणढे समढे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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