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________________ १६६ उववाइय सुत्त बिईयदिवसे चंदसूरदंसणियं काहिति। छट्टे दिवसे जागरियं काहिंति। भावार्थ - दूसरे दिन 'चन्द्र-सूर्य-दर्शनिका' नामक जन्म उत्सव करेंगे। छठे दिन 'जागरिका' नामक जन्मोत्सव करेंगे। ___ एक्कारसे दिवसेवीइक्कंतेणिव्वित्तेअसुइ-जायकम्पकरणे, संपत्ते बारसाहे दिवसे अम्मापियरो इमं एयारूवंगोणं गुण-णिप्फण्णंणामधेजंकाहिंति-जम्हाणं अम्हं इमंसि दारगंसि गब्भत्थंसि चेव समाणंसि धम्मे दढपइण्णा, तं होउ णं अम्हं दारए दढपइण्णे णामेणं। तए णं तस्स दारगस्स अम्मा-पियरो णामधेनं करेहिंति-दढपइण्णे-त्ति। भावार्थ - ग्यारह दिन बीत जाने पर-जनन-क्रिया सम्बन्धी अशुचि के विधान के निवृत्त होने पर-बारहवें दिन माता-पिता यह इस रूप से गुणों से सम्बन्धित गुणनिष्पन्न-गुणानुसार बनने वाला नामसंस्कार करेंगे- क्योंकि यह बालक गर्भ में था, उस समय धर्म में हमारी दृढ़ प्रतिज्ञा हुई थी। अतः हमारा बालक 'दढपइण्ण'-दृढ़प्रतिज्ञ नाम से प्रसिद्ध हो।' तब माता-पिता उस बालक का नाम 'दढपइण्ण' रखेंगे। तं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो साइरेगऽटुवास-जायगं जाणित्ता सोभणंसि तिहिकरणणक्खत्तमुहत्तंसि कलायरियस्स उवणेहिति। भावार्थ - फिर वे 'दढपइण्ण' बालक को आठ वर्ष से अधिक का हुआ जानकर, शुभ तिथि, करण और नक्षत्र वाले मुहूर्त में कलाचार्य के पास ले जायेंगे। तएणं से कलायरिए तं दढपइण्णं दारगं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरूयपजवसाणाओ बावत्तरि कलाओ सुत्तओ य अत्थओ य करणओ य सेहाविहिइ, सिक्खाविहिइ। भावार्थ - तब कलाचार्य उस 'दढपइण्ण' बालक को लेखादि-लेखनकला आदि में है जिसके ऐसी, गणितप्रधान 'शकुनरुत' पर्यन्त बहत्तर कलाएं सूत्र से, अर्थ से और प्रयोग से सधाएंगे-सिखाएंगे। _ तंजहा-लेहं, गणियं, रूवं, णटुं, गीयं वाइयं, सरगयं, पुक्खरगर्य, समतालं, जूयं, जणवायं, पासकं, अट्ठावयं, पोरेकच्चं, दगमट्टियं, अण्णविहिं, पाणविहिं, वत्थविहिं, विलेवणविहि, सयणविहि, अजं, पहेलियं,मागहियं,गाहं, गीइयं, सिलोयं, हिरण्णजत्तिं, सुवण्णजुत्तिं, गंधजुत्तिं, चुण्णजुत्तिं, आभरण-विहि, तरुणीपडिकम्मं, इथिलक्खणं, पुरिसलक्खणं, हयलक्खणं, गयलक्खणं, गोणलक्खणं, कुक्कुडलक्खणं, चक्कलक्खणं, छत्तलक्खणं, चम्मलक्खणं, दंडलक्खणं, असिलक्खणं, मणिलक्खणं, काकणिलक्खणं, वत्थुविज्ज, खंधारमाणं,णगरमाणं, वत्थुणिवेसणं, वूहं पडिवूह, चार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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