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________________ १३६ उववाइय सुत्त औपपातिक पृच्छा ३८- तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेटे अंतेवासी इंदभई नामं अणगारे गोयम-गोत्तेणं। भावार्थ - उस काल और उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ज्येष्ठ शिष्य गौतम गौत्रीय इन्द्रभूति नाम के अनगार थे। ___ सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वइरोसह-नारायसंघयणे कणगपुलगणिग्घसपम्हगोरे। भावार्थ - उनका शरीर सात हाथ ऊँचा था। उनकी आकृति समचतुरस्र संस्थान-संस्थित थी। उनकी देहयष्टि का बन्धन सर्वोत्तम-वज्र-ऋषभ-नाराच-संहनन था। निकष-सोने की कसौटी का पत्थर पर-अङ्कित स्वर्णरेखा-सी पद्मगौर-कमल के गर्भ-सी गोरी उनकी कान्ति थी। उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे घोरतवे उराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी। भावार्थ-वे उग्र तपस्वी, दीप्त-कर्मवन को जलाने के लिये प्रदीप्त अग्नि के समान ज्वलित तेजोमय, तपस्वी, तप्ततपस्वी, महातपस्वी, भीम-घोरतपस्वी घोर, घोरगुणी और घोर तपस्वी थे। विवेचन - उग्र, दीप्त, तप्त और महा-ये तप के चार विशेषण दिये गये हैं। 'उग्र' पद तप में तल्लीनता का सूचक है। दीप्त' पद उनके तप की सार्थकता बतला रहा है। 'तप्त' पद उनके स्वयं की तपोरूपता का सङ्केत कर रहा है। अर्थात् वे इस प्रकार तपोरूप बन गये थे-जिस प्रकार कि तपा हुआ लोहे का गोला। 'महा' विशेषण प्रशस्त वा बृहत् अर्थ में आया है। 'ओराले' अर्थात् उदार प्रधान तपस्वी थे। 'भीम' किस प्रकार?-अतिकष्टमय तप को करते हुए, समीपवर्ती अल्प सत्त्व वाले जीवों के लिये भयानक हो गये थे। 'घोर'=१ परीषह-इन्द्रिय-कषायादि रिपुओं का विनाश करने में २. आत्मनिरपेक्ष-अपने आपके प्रति उदासीन (-अन्य)। 'घोरगुण'-अन्य से कठिनता से पाले जा सके, ऐसे मूलगुण आदि के धारक थे। ___घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्जाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। भावार्थ - घोर ब्रह्मचर्यवासी-अल्पसत्त्व वाले जीवों के द्वारा मुश्किल से पालन हो सकने के कारण कठिन ब्रह्मचर्य वास के धारक, शरीर संस्कार के त्यागी, संक्षिप्त-विपुल शरीर के भीतर लीनअनेक योजन प्रमाण क्षेत्राश्रित वस्तुओं को जलाने में समर्थ होने से विस्तीर्ण, तेजोलेश्या-लब्धि विशेष के स्वामी वे गौतम स्वामी श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से न अधिक नजदीक न अधिक दूर, ऊर्ध्व Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004190
Book TitleUvavaiya Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages222
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size23 MB
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