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देवों का शरीर और शृङ्गार
वयं च पढमं समइक्कंता, बितियं च वयं असंपत्ता, भद्दे जोव्वणे वट्टमाणा।
भावार्थ - वे पहली वय-बाल अवस्था से पार पहुंचते हुए और दूसरी वय-यौवन अवस्था को नहीं पाये हुए-भद्र-यौवन- कुमार अवस्था में स्थित थे।
विवेचन - वय के विषय में टीकाकार ने निम्नलिखित श्लोक उद्धृत किया है - आषोडशाद्भवेद्बालो, यावत् क्षीराननिवर्तकः। मध्यमः सप्ततिं यावत्, परतो वृद्ध उच्यते॥
अर्थात् १६ वर्ष की वय तक बाल, ७० वर्ष की वय तक मध्यम और इसके बाद वृद्ध अवस्था कही जाती है।
तलभंगय-तुडीय-पवर-भूसण-णिम्मल-मणि-रयण-मंडियभुया (दस-मुद्दा मंडियग्ग-हत्था)।
- उनकी भुजाएँ मणिरत्नों से बने हुए अति श्रेष्ठ तल भंगक- बाहु के आभरण, त्रुटिका-बाहु रक्षिका या तोड़े और निर्मल भूषणों से सुशोभित थी। दसों अंगुलियों में पहनी हुई अंगुठियों से उनके हाथ सुशोभित थे।
चूलामणि चिंधगया भावार्थ - उनके चूडामणि-शिरोमणि रूप में चिह्न थे अर्थात् उनके मुकूट में चूड़ामणि का चिह्न था। सुरूवा महिड्डिया महजुइया महब्बला महायसा महासोक्खा महाणुभागा।
भावार्थ - वे सुरूप, महर्द्धिक-विशिष्ट भवन परिवारादि वाले, महती द्युति के धनी, महाबली, महासौख्य के स्वामी और महानुभाग-अचिन्त्य शक्ति से सम्पन्न थे। - हार विराइय वच्छा, कडग-तुडिय थंभिय-भुया अंगय-कुंडल-मट्ठ-गंडतलकण्ण-पीढ-धारी विचित्तवत्थाभरणा, विचित्त-माला-मउलि-मउडा, कल्लाण-कयपवर-वत्थ-परिहिया, कल्लाण-कय-पवर-मल्लाणुलेवणा, भासुरबोंदी, पलंब वण मालधरा।
भावार्थ - उनके वक्षस्थल हार से सुशोभित थे। उनकी भुजाएँ कंकणों और बाहुरक्षिका से स्तंभित-स्थिर बन रही थीं। वे भुजबंध, कुण्डल, सुन्दर स्वच्छ कपोल या कस्तुरी से चित्रित गण्डस्थल वाले और कर्णपीठ-कान के आभूषण के धारक थे। उनके वस्त्राभरण या हस्ताभरण विचित्र थे। उनके मस्तकों पर विचित्र पुष्पमालाओं से युक्त मुकुट थे। वे कल्याणकारी श्रेष्ठ फूलों और विलेपनों से युक्त, शुलती हुई मालाओं और सभी ऋतुओं के पुष्पों से बनी हुई घुटनों तक लटकती हुई मालाओं से विभूषित प्रकाशमान् देह वाले थे।
दिव्वेणं वण्णेणं, दिव्वेणं गंधेणं, दिव्वेणं रूवेणं, दिव्वेणं फासेणं, दिव्वेणं
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