________________
अध्ययन १
संयम का पालन करते हैं वे ही उत्तम साधु हैं और वे ही कर्म बन्धन को तोड़ कर मोक्ष पद के अधिकारी होते हैं, यह तीर्थंकरों का सिद्धान्त जानना चाहिये ।। १४॥
विवेचन - गृहस्थ तो परिग्रह और आरम्भ समारम्भ का सर्वथा त्याग नहीं कर सकता किन्तु श्रावक व्रत धारण करते समय इनकी मर्यादा करता है। किन्तु कितनेक अपने आपको श्रमण माहण कहला कर भी परिग्रह रखते हैं और आरम्भ समारम्भ में प्रवृत्ति करते हैं। अतः आरम्भ परिग्रह का सर्वथा त्याग करने वाले निर्ग्रन्थ मुनियों को उनका सम्पर्क नहीं रखना चाहिये सिर्फ इस शरीर के निर्वाह के लिये गोचरी रूप भिक्षाचरी के लिये इनके घर जाना होता है। विशेष परिचय का वर्जन करना चाहिये।
तत्थ खलु भगवया छज्जीव-णिकाय-हेऊ पण्णत्ता, तं जहा-पुढवीकाए जाव तसकाए । से जहा णामए मम असायं दंडेण वा, अट्ठीण वा, मुट्ठीण वा लेलूण वा, कवालेण वा, आउट्टिज्जमाणस्स वा, हम्ममाणस्स वा, तज्जिज्जमाणस्स वा, ताडिज्जमाणस्स वा, परियाविज्जमाणस्स वा, किलामिज्जमाणस्स वा, उद्दविज्जमाणस्स वा, जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारगं दुक्खं भयं पडिसंवेदेमि, इच्चेवं जाण सव्वे पाणा, सव्वे भूया, सव्वे जीवा, सव्वे सत्ता दंडेण वा, जाव कवालेण वा, आउट्टिग्जमाणा वा, हम्ममाणा वा, तज्जिज्जमाणा वा, ताडिज्जमाणा वा, परियाविज्जमाणा वा, किलामिज्जमाणा वा, उद्दविज्जमाणा वा, जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारगं दुक्खं भयं पडिसंवेदेति । एवं णच्चा सव्वे पाणा जाव सत्ता ण हंतव्वा, ण अज्ज़ावेयव्या णयरिघेतव्या ण परितावेयव्वा ण उद्दवेयव्वा । - से बेमि जे य अईया, जे य पडुप्पण्णा, जे य आगमिस्सा, अरिहंता भगवंता सव्वे ते एव-माइक्खंति एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं परूवेंति-सव्वे पाणा जाव सत्ता ण हंतव्वा ण अज्जावेयव्या, ण परिघेतव्वा ण परितावेयव्या, ण उद्दवेयव्वा । एस धम्मे धुवे, णिइए सासए समिच्च लोगं खेयण्णेहिं पवेइए । एवं से भिक्खू विरए पाणाइवायाओ जाव विरए परिग्गहाओ, णो दंत-पक्खालणेणं दंते पक्खालेग्जा णो अंजणं, णो वमणं, णो धूवणे, णो तं परियाविएज्जा।
से भिक्खू अकिरिए, अलुसिए, अकोहे, अमाणे, अमाए, अलोहे, उवसंते, परिणिव्वुडे, णो आसंसं पुरओ करेज्जा-इमेण मे दिद्वेण वा सुएण वा मएण वा विण्णाएण वा, इमेण वा, सुचरियतव-णियम-बंभचेर-वासेण, इमेण वा, जाया
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org