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________________ अध्ययन १ waameemaramanan e wwe रोगायंकाओ परिमोएह अणिट्ठाओ जाव णो सुहाओ, एवमेव णो लद्ध-पुव्वं भवइ । तेसिं वा वि भयंताराणं मम णाययाणं अण्णयरे दुक्खे रोगायंके समुपज्जेज्जा अणिढे जाव णो सुहे, से हंता अहमेएसिं भयंताराणं णाययाणं इमं अण्णयरं दुक्खं रोगायंकं परियाइयामि अणिटुं जाव णो सुहं, मा मे दुक्खंतु वा जाव मा मे परतप्पंतु वा; इमाओ णं अण्णयराओ दुक्खाओ रोगायंकाओ परिमोएमि अणिट्ठाओ जाव णो सुहाओ, एवमेव णो लद्धपुव्वं भवइ । अण्णस्स दुक्खं अण्णो ण परियाइयइ, अण्णण कडं अण्णो णो पडिसंवेएइ। पत्तेयं जायइ, पत्तेयं मरइ; पत्तेयं चयइ, पत्तेयं उववज्ज पत्तेयं झज्झा, पत्तेयं सण्णा, पत्तेयं मण्णा एवं विण्णू-वेयणा । इह खलु णाइसंजोगा णो ताणाए वा णो सरणाए वा । पुरिसे वा एगया पुब्बिं णाइ-संजोए विप्पजहइ, णाइ-संजोगा वा एगया पुव्विं पुरिसं विप्पजहंति । अण्णे खलु णाइसंजोगा अण्णो-अहमंसि; से किमंग पुण वयं अण्ण-मण्णेहिं णाइ-संजोगेहिं मुच्छामो? इति संखाए णं वयं णाइ-संजोगं विप्पजहिस्सामो। ___ से मेहावी जाणेज्जा बहिरंग-मेयं, इणमेव-उवणीय-तरागं; तं जहा-हत्था मे, पाया मे, बाहा मे, उरू मे, उदरं मे, सीसं मे, सीलं मे, आऊ मे, बलं मे, वण्णो मे, तया मे, छाया मे, सोयं मे, चक्खू मे, घाणं मे, जिब्भा मे, फासा मे, ममाइज्जइ वयाउ परिजूरइ, तं जहा-आउओ, बलाओ, वण्णाओ, तयाओ, छायाओ, सोयाओ जाव फासाओ । सुसंधिओ संधी विसंधी भवइ, वलियतरंगे गाए भवइ, किण्हा केसा पलियां भवंति; तं जहा-जंपि य इमं सरीरगं उरालं आहारोवइयं एवं पि य अणुपुवेणं विप्पजहियव्वं भविस्सइ । एवं संखाए से भिक्खू भिक्खायरियाए समुट्ठिए दुहओ लोगं जाणेज्जा; तं जहा-जीवा तेव अजीवा चेव । तसा चेव थावरा चेव ॥१३॥ कठिन शब्दार्थ - कंसं - कांस्य-काँसी के बर्तन, दूसं - दूष्य वस्त्र, रोगायंके - रोग या आतंक, अणि?- अनिष्ट, अकंते- अकान्त, अमणुण्णे- अमनोज्ञ, अमणामे - मन को नहीं भाने वाला, परियाइयह - बांट कर ले लो, पडिमोयह - मुक्त करो, विप्पजहइ - छोड़ देता है, बहिरंगं - बाहर के (दूर के) उवणीयतरागं - निकट के, भज्जा - स्त्री, धूया - पुत्री, पेसा - प्रेष्य-दास, नत्ता - नाती, सुण्हा - पुत्रवधू, सहा - मिन्न, सयणसंगंथसंथुया - स्वजन सग्रन्थ संस्तुत-पहले और पीछे के परिचित संबंधी, पत्तेयं - प्रत्येक-अकेला, चयइ - त्याग करता है, उववज्जइ - उपन होता है, झंझाकलह, मण्णा - चिंतन, विण्णू - विद्वान्, वेयणा - वेदना, णाइसंजोगा - ज्ञातिसंयोग, उरू - ऊरु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004189
Book TitleSuyagadanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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