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________________ श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कंध २ भवइ कामं तं समणाय माहणा/य संपहारिंसु गमणाए जाव मए एस धम्मे सुयक्खाए सुपण्णत्ते भवइ । इह खलु दुवे पुरिसा भवंति - एगे पुरिसे किरियमाइक्खड़, एगे पुरिसे णो किरिय- माइक्खइ । जे य पुरिसे किरिय- माइक्खड़, जे य पुरिसे णो किरिय- माइक्खड़, दो वि ते पुरिसा तुल्ला एगट्ठा, कारण - मावण्णा । बाले पुण एवं विप्पडियावेएइ कारण-मावण्णे-अहमंसि दुक्खामि वा, सोयामि वा, जूरामि वा तिष्यामि वा, पीडामि वा, परितप्यामि वा, अहमेय-मकासि; परो वा, जं दुक्खड़ वा, सोयइ वा, जूरइ वा, तिप्पड़ वा, पीडड़ वा, परितप्पड़ वा, परो एवमकासि । एवं से बाले सकारणं वा, परकारणं वा एवं विप्पडियावेएइ कारणमावणे । २६ मेहावी पुण एवं विप्पडियावेएड़ कारण-मावण्णे-अहमंसि दुक्खामि वा, सोयामि वा, जूरामि वा, तिप्यामि वा, पीडामि वा, परितप्यामि वा णो अहं एव-मकासि । परो वा, जं दुक्खड़ वा, जाव परितप्पड़ वा, णो परो एव-मकासि । एवं से मेहावी सकारणं वा, परकारणं वा, एवं विप्पडियावेएइ कारणमावण्णे-से बेमि पाईणं वा, ६ जे तस - थावरा पाणा ते एवं संघाय मागच्छंति, ते एवं विपरियासमावज्जंति, ते एवं विवेगमागच्छंति, ते एवं विहाण-मागच्छंति, ते एवं संगतियंति उवेहाए । it एवं विप्पडिवेर्देति तंजहा-किरिया त्ति वा जाव णिरए त्ति वा अणिरए त्ति वा; एवं ते विरूव-रूवेहिं कम्म-समारंभेहिं विरूव-रूवाइं काम-भोगाई समारभंति भोयणाए । एवमेव ते अणारिया विप्पडिवण्णा तं सद्दहमाणा जाव इति ते णो हव्वाए, णो पाराए, अंतरा काम - भोगेसु विसण्णा । चडत्थे पुरिसजाए णियइवाइए ति आहिए । इच्छेते चत्तारि पुरिसजाया णाणा- पण्णा, णाणा-छंदा, णाणा-सीला, णाणादिट्ठी, णाणा-रुई, णाणा- रंभा, णाणा-अज्झवसाण-संजुत्ता, पहीण - पुव्वसंजोगा आरियं मग्गं असंपत्ता इति ते णो हव्वाए, णो पाराए अंतरा काम-१ - भोगेसु विसण्णा ॥ १२ ॥ कठिन शब्दार्थ - णियइवाइए - नियतिवादी, कारण-मावण्णे कारण को मान कर, Jain Education International For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.004189
Book TitleSuyagadanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2005
Total Pages226
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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