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अध्ययन ७
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कालगयत्ति ?, वत्तव्वं सिया, ते पाणा वि वुच्चंति जाव अयं वि भेदे से णो णेयाउए भवइ ।
. भावार्थ - श्री गौतम स्वामी उदक पेढाल पुत्र से कहते हैं कि - हे उदक ! संसार में ऐसे भी श्रावक होते हैं जो गृहस्थवास को त्याग कर दीक्षा ग्रहण करने में तथा अष्टमी, चतुर्दशी और पूर्णिमा आदि तिथियों में पूर्ण पौषध व्रत को पालन करने में अपनी असमर्थता प्रकट करते हुए कहते हैं कि हम मरण समय में संथारा और संलेखना को धारण करके उत्तम गुण युक्त होकर भात पानी का सर्वथा त्याग करेंगे तथा उस समय हम समस्त प्राणातिपात आदि आस्रवों को तीन करण और तीन योगों से त्याग करेंगे । ऐसी प्रतिज्ञा करने के पश्चात् वे श्रावक इसी रीति से जब मृत्यु को प्राप्त करते हैं तब उनकी गति के विषय में यही कहना होगा कि वे उत्तम गति को प्राप्त हुए हैं। वे अवश्य किसी देवलोक में उत्पन्न हुए हैं। वे श्रावक देवता होने के कारण यद्यपि किसी मनुष्य के द्वारा मारे जाने योग्य तो नहीं है तथापि वेत्रस तो कहलाते ही हैं अतः जिसने त्रस जीवों के घात का त्याग किया है उसके त्याग के विषय तो वे देव होते ही है अतः त्रस के अभाव के कारण श्रावक के प्रत्याख्यान को निराधार बताना न्याय संगत नहीं है यह श्री गौतम स्वामी का आशय है ।।
भगवं च णं उदाहु संतेगइया मणुस्सा भवंति, तंजहा - महइच्छा महारंभा - महापरिग्गहा अहम्मिया जाव दुप्पडियाणंदा जाव सव्वाओ परिग्गहाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, जेहिं समणोवासगस्स आयाणसो आमरणंताए दंडे णिक्खित्ते, ते तओ आउगं विप्पजहंति, तओ भुजो सगमादाए दुग्गइगामिणो भवंति ते पाणा वि वुच्चंति ते तसा वि वुच्चंति ते महाकाया ते चिरटिइया ते बहुयरगा आयाणसो, इति से महयाओ णं जण्णं तुब्भे वयह तं चेव अयं वि भेदे से णो णेयाउए भवइ ।
कठिन शब्दार्थ - दुप्पडियाणंदा - दुष्प्रत्यानन्द-पाप में आनन्द मानने वाले, अप्पडिविरया - अप्रतिविरत, सगमादाए - अपने कर्म को अपने साथ ले कर ।।
भावार्थ - श्री गौतम स्वामी कहते हैं कि - इस जगत् में बहुत से मनुष्य महा इच्छा वाले, महारम्भी, महापरिग्रही और अधार्मिक होते हैं । वे कितना ही समझाने पर भी नहीं समझते । वे सावध कर्मों से जीवन भर निवृत्त नहीं होते हैं । वे प्राणी भी कहलाते हैं और त्रस भी कहलाते हैं । प्रत्याख्यानी श्रावक व्रत ग्रहण के समय से लेकर मरणपर्य्यन्त उन प्राणियों के घात के त्यागी होते हैं । वे प्राणी काल के समय मृत्यु को प्राप्त करके अपने पाप कर्म के कारण नरक गति को प्राप्त करते हैं । वे उस नरक में चिरकाल तक निवास करते हैं उन प्राणियों को मारने का श्रावक ने त्याग किया है
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