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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कंध २
अण्णाइं पाणाइं, भूयाई, जीवाइं, सत्ताइं समुच्छेदेति, पहीणा पुष्व-संजोगं आयरियं मग्गं असंपत्ता इति ते णो हव्वाए णो पाराए, अंतरा काम-भोगेसु विसण्णा।
इति पढमे पुरिसजाए तज्जीव-तच्छरीरए त्ति आहिए ॥९॥ ..
कठिन शब्दार्थ - आरिया - आर्य, अणारिया - अनार्य, उच्चागोया - उच्च गोत्र में उत्पन्न, णीयागोया - नीच गोत्र में उत्पन्न, कायमंता - लम्बे शरीर वाले, रहस्समंता - छोटे शरीर वाले, महयाहिमवंत-मलयमंदरमहिंदसारे - महाहिमवान्, मलय, मंदराचल तथा महेन्द्र पर्वत के समान, अच्चंतविसुद्धराय-कुलवंसप्पसूए - अत्यंत विशुद्ध राज कुल के वंश में उत्पन्न, णिरंतररायलक्खण विसइयंगमंगे- अंग और प्रत्यंग राज लक्षणों से सुशोभित, बहुजणबहुमाणपूइए - बहुतजनों के द्वारा बहुमान से पूजित, सव्वगुण समिद्धे - समस्त गुणों से परिपूर्ण, खत्तिए - क्षत्रिय, मुदिए - मुदित, मुद्धाभिसित्ते- मूर्धाभिषिक्त राज्याभिषेक किया हुआ, माउपिउसुजाए - माता-पिता का सुपुत्र, दयप्पिएदयालु, सीमंकरे - मर्यादा स्थापित करने वाला, सीमंधरे - मर्यादा का स्वयं पालन करने वाला,
खेमंकरे - प्रजा का कल्याण करने वाला, खेमंधरे - स्वयं कल्याण को धारण करने वाला, णरपवरे - नर प्रवर-मनुष्यों में श्रेष्ठ, अड्डे - आढ्य-धनवान्, दित्ते - तेजस्वी, वित्ते - प्रसिद्ध, विच्छिण्णविउलभवणसयणासणजाण-वाहणाइण्णे - बड़े बड़े मकान, शयन, आसन यान और वाहन से परिपूर्ण, बहुधणबहुजायरूवरयए- बहुत धन सुवर्ण और चांदी से भरे हुए, आओगपओगसंपउत्ते - आयोग प्रयोग संप्रयुक्त-विपुल आय और व्यय वाले, विच्छड्डिय-पउरभत्तपाणे - प्रचुर भात पानी, पडिपुण्ण-कोसकोट्ठागाराउहागारे - खजाना, अन्न रखने का स्थान, शस्त्र रखने के स्थान से प्रतिपूर्ण, दुब्बलपच्चामित्ते - शत्रुओं को दुर्बल किया हुआ, ववगयदुभिक्खमारियविष्यमुक्कं - दुर्भिक्ष और महामारी के भय से रहित, पसंतडिंबडंबरं - स्वचक्र और परचक्र के भय से रहित, पसाहेमाणे - शासन करता हुआ ।
उग्गा - उग्र-उग्र कुल में उत्पन्न, उग्गपुत्ता - उग्रपुत्र, भोगपुत्ता - भोग पुत्र, कोरव्वा - कुरुकुल में उत्पन्न, भट्टा - सुभट कुल में उत्पन्न, सड्डी - श्रद्धावान्, पायतला - पादतल से, केसग्गमत्थया - मस्तक के केशाग्र से, तयपरियंते - चमड़े तक, धरमाणे - स्थित रहने पर, विणटुंमिनष्ट होने पर, आदहणाए- जलाने के लिए, णिजइ - ले जाते हैं, अगणिझामिए - अग्नि के द्वारा जलाने पर, अट्ठीणि - हड्डियाँ, कवोयवण्णाणि - कपोत वर्ण वाली, पच्चागच्छंति - लौट जाते हैं, असंविजमाणे - शरीर से भिन्न जीव का संवेदन (अस्तित्व) नहीं, छलंसिए - षट् कोण वाला, कोसाओ- म्यान से, असिं- तलवार को, अभिणिव्यट्टित्ताणं - निकाल कर, मुंजाओ - मूंज से, इसियं - शलाका को, मंसाओ - मांस से, अट्टि - हड्डी को, करयलाओ - हथेली से, आमलगं -
आँवले को, दहिओ - दही से, णवनीयं - नवनीत (मक्खन) को, तिलहितो - तिल में से, तल्लं - तैल को, पिण्णाए - खली, इक्खूओ - ईख से, छोए - छिलका, अरणीओ - अरणी से, सयं -
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