________________
अध्ययन १
पुष्करिणी से बाहर निकालने के लिये चार दिशाओं से आये थे परन्तु वे चारों ही पुष्करिणी के महान् कीचड़ में स्वयं फंस कर अपने को भी उद्धार करने में समर्थ नहीं हुए । जैसे कोई विद्वान् पुरुष पुष्करिणी के अन्दर न जाकर उसके तट पर ही खड़ा रह कर केवल शब्द के द्वारा उस श्वेत कमल को बाहर निकाल ले इसी तरह राग द्वेष रहित धार्मिक पुरुष विषय भोग को त्याग कर धर्मोपदेश के द्वारा राजा महाराजा आदि को संसार सागर से पार कर देता है इसलिये मैंने राग द्वेष रहित उत्तम साधु को अथवा उत्तम धर्म को भिक्षु कहा है। जैसे वह विद्वान् पुरुष उस पुष्करिणी के तट पर स्थित रहता है इसी तरह उत्तम धर्म या उत्तम साधु धर्म तीर्थ में स्थित रहते हैं। इसलिए मैंने धर्म तीर्थ को मनुष्य लोक रूपी पुष्करिणी का तट कहा है। जैसे विद्वान् पुरुष श्वेत कमल को केवल शब्द के द्वारा बाहर निकाल ले इसी तरह उत्तम साधु धर्मोपदेश के द्वारा राजा महाराजा आदि को संसार से उद्धार कर देते हैं इसलिये धर्मोपदेश को मैंने उस भिक्षु का शब्द कहा है। जैसे जल और कीचड़ को त्याग कर कमल बाहर आता है इसी तरह उत्तम पुरुष अपने आठ प्रकार के कर्म तथा विषय भोगों को त्याग कर निर्वाण पद को प्राप्त करते हैं अतः निर्वाण पद की प्राप्ति को मैंने कमल का पुष्करिणी से बाहर आना कहा है।। ८॥
इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति अणुपुव्वेणं लोगं उववण्णा। तं जहा-आरिया वेगे, अणारिया वेगे; उच्चागोया वेगे, णीया-गोया वेगे, कायमंता वेगे, रहस्समंता वेगे; सुवण्णा वेगे, दुवण्णा वेगे; सुरूवा वेगे, दुरूवा वेगे। तेसिं च णं मणुयाणं एगे राया भवइ महया-हिमवंत-मलय-मंदरमहिंद-सारे, अच्चंत-विसुद्ध-रायकुल-वंस-प्पसूए, णिरंतर-राय-लक्खण-विराइयंग- । मंगे, बहुजण-बहुमाण-पूइए, सव्व-गुण-समिद्धे, खत्तिए, मुदिए, मुद्धा-भिसित्ते, माउ-पिङ-सुजाए, दय-प्पिए, सीमंकरे सीमंधरे, खेमंकरे, खेमंधरे, मणुस्सिंदे, जणवयपिया, जणवय-पुरोहिए, सेटकरे, केउकरे, णर-पवरे, पुरिस-पवरे, पुरिस-सीहे, पुरिस-आसीविसे, पुरिस-वर-पोंडरीए, पुरिस-वर-गंधहत्थी, अड्डे, दित्ते, वित्ते, विच्छिण्ण-विउल-भवण-सयणासण-जाण-वाहणाइण्णे, बहुधण-बहु-जायरूवरयए, आओग-पओग-संपउत्ते, विच्छड्डिय-पउर-भत्त-पाणे, बहुदासी-दास-गो-महिसगवेलग-प्पभूए, पडिपुण्ण कोस-कोट्ठागारा-उहागारे, बलवं, दुब्बल-पच्चामित्ते,
ओहय-कंटयं, णिहय-कंटयं, मलिय-कंटयं, उद्धिय-कंटयं, अकंटयं; ओहय-सत्तू, णिहयसत्तू, मलियसत्तू, उद्धियसत्तू, णिजियसत्तू, पराइय-सत्तू, ववगय दुभिक्खमारिभय विप्पमुक्कं, रायवण्णओ जहा उववाइए जाव पसंत-डिंब-डंबरं रज्जं पसाहेमाणे विहरइ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org