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अध्ययन १
पद्धति को जानने वाला हूँ और श्वेत कमल को इस पुष्करिणी से बाहर निकालने के लिये आया हूँ इस प्रकार कह कर वह साधु उस पुष्करिणी में प्रवेश न करके तट पर ही खड़ा होकर कमल से कहता है कि - "हे उत्तम श्वेत कमल! बाहर निकलो, बाहर निकलो।' साधु की इस आवाज को सुन कर वह श्वेत कमल उस पुष्करिणी से बाहर आता है। यह इस सूत्र का तात्पर्य है। इस सूत्र में सत्य अर्थ को समझाने के लिये पुष्करिणी, कमल, एवं कीचड़ में फंसे हुए चार पुरुष तथा किनारे खड़ा होकर आवाज मात्र से कमल को बाहर निकालने वाले साधु पुरुष दृष्टान्त रूप से कहे गये हैं परन्तु इस सूत्र में दार्टान्त का वर्णन नहीं है वह आगे के सूत्र में कहा जायेगा ।। ६॥ - "किट्टिए णाए समणाउसो ! अढे पुण से जाणियव्वे भवइ।"
"भंते ! ति" - समणं भगवं महावीरं णिग्गंथा य णिग्गंथीओ य वंदंति णमंसंति; वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-"किट्टिए णाए समणाउसो ! अटुं पुण से ण जाणामो।" ___"समणाउसो त्तिः' - समणे भगवं महावीरे ते य बहवे णिग्गंथे य णिग्गंथीओ य आमंतित्ता एवं वयासी-हंत समणाउसो ! आइक्खामि, विभावेमि, किट्टेमि, पवेदेमि सअटुं सहेउं सणिमित्तं भुज्जो भुज्जो उवदंसेमि से बेमि ।। ७॥ - कठिन शब्दार्थ - किट्टिए - बताया है, समणाउसो - आयुष्मन् श्रमणो !, आइक्खामि -
आख्यान करता हूँ, कहता हूँ, विभावेमि- प्रकट करता हूँ, किट्टेमि - समझाता हूँ, पवेदेमि - प्रवेदन करता हूँ, सअटुं - अर्थ सहित, सहेउं - हेतु सहित, सणिमित्तं - निमित्त सहित, भुजो भुजो - बार बार, उवदंसेमि - बताता हूँ।
भावार्थ - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी बोले-'हे आयुष्मन् श्रमणो ! यह उदाहरण कहा गया है। इसका अर्थ-मर्म जानने योग्य है ।' ... 'हां भन्ते !' - यह कहकर सभी साधु और साध्वी श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दनानमस्कार करते हैं और वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार बोले - 'हे भगवन् ! जो यह उदाहरण कहा गया है, इसका रहस्य हम नहीं जानते हैं।' ___ 'हे आयुष्मन् श्रमणो !'-श्रमण भगवान् महावीर स्वामी बहुत-से साधु और साध्वियों को सम्बोधित करके इस प्रकार बोले-'अच्छा, मैं इस उदाहरण का रहस्य अर्थ, हेतु और कारण सहित स्पष्ट, विस्तृत और सुगम बनाकर कहता हूँ ।' ।७। - लोयं च खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो ! पुक्खरिणी बुइया। कम्मं च खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो ! उदए बुइए। काम भोगे य खलु मए अप्पाहटु समणाउसो ! से सेए बुइए । जण जाणवयं च खलु मए अप्पाहट्ट समणाउसो ! ते बहवे पउम-वर
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