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अध्ययन १ उद्देशक ३ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
भावार्थ - ईश्वरकृत तत्त्ववादी कहते हैं कि जीव, अजीव, सुख तथा दुःख से युक्त यह लोक ईश्वरकृत है और सांख्यवादी कहते हैं कि यह लोक प्रधानादिकृत (सत्त्व, रज, तम, गुण से बना) है ।
विवेचन - ईश्वरवादी का कथन है कि - जो जो कार्य होते हैं वे किसी कर्ता के द्वारा किये होते . हैं। जैसे की घट (घडा) पट-कपड़ा आदि यह जगत् भी कार्य है इसलिये इसका कोई बुद्धिमान कर्ता होना चाहिये और वह कर्ता ईश्वर ही हो सकता है सांख्यवादी इस जगत् का मूल कारण सत्त्व, रज
और तम इन तीन गुणों को मानता है। यह सृष्टि त्रिगुणात्मक है। इन तीन गुणों की साम्य अवस्था को . प्रकृति (प्रधान) कहते हैं ।
सयंभुणा कडे लोए, इइ वुत्तं महेसिणा । मारेण संथुया माया, तेण लोए असासए ॥७॥
कठिन शब्दार्थ - सयंभुणा - स्वयंभू ने, मारेण - मार अर्थात् यमराज ने, संथुया - रची है, तेण - इस कारण, असासए- अशाश्वत- अनित्य ।।
भावार्थ - कोई अन्यतीर्थी कहते हैं कि स्वयंभू-विष्णु ने इस लोक को रचा है, यह हमारे महर्षि ने कहा है । यमराज ने माया बनाई है इसलिए यह लोक अनित्य है ।
__ विवेचन - जो स्वयं अपने आप ही उत्पन्न होता है उसे स्वयंभू कहते हैं वही विष्णु है। वह पहले अकेला था जब उसने दूसरे की इच्छा की तब शक्ति उत्पन्न हुई। शक्ति से जगत् की सृष्टि उत्पन्न हुई। जगत् पर बहुत भार बढ जायेगा इस भय से जगत् को मारने वाला 'मार' अर्थात् यमराज को उत्पन्न किया और यमराज ने माया बनाई उस माया से लोग मरते
रते हैं। माहणा समणा एगे, आह - 'अंडकडे जगे' । 'असो तत्तमकासी य' - अयाणंता मुसं वए ॥ ८॥ . . .. • कठिन शब्दार्थ - अंडकडे - अंडकृत-अंडे से किया हुआ, जगे - जगत् को, असो - उस, तत्तं - तत्त्व-पदार्थ समूह को, अकासी - बनाया, अयाणंता - न 'जानने वाले, मुसं - झूठ, वए - कहते हैं।
भावार्थ - कोई ब्राह्मण श्रमण कहते हैं कि यह जगत् अण्डा से किया हुआ है । तथा वे कहते हैं कि ब्रह्मा ने तत्त्व समूह को बनाया। वस्तुतः वे अज्ञानी वस्तु तत्त्व को न जानते हुए मिथ्या ही ऐसा कहते हैं। - विवेचन - 'अण्डे से संसार बना' इसका आशय यह है कि-पहले प्रलय में जगत् नष्ट हो गया था । सिर्फ एक ब्रह्मा ही था। उसने जल में एक अण्डा उत्पन्न किया। फिर धीरे-धीरे वह अण्डा बढने
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