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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 हैं। ऐसा मार्ग सम्यग् ज्ञान, सम्यग् दर्शन और सम्यक् चारित्र रूप मोक्ष मार्ग है। बुद्धिमान् पुरुष उसी को ग्रहण करे। ३६३ पाखण्डं मत कुतीर्थिक मत कहलाते हैं उनसे यह किसी भी प्रकार से खण्डित नहीं किया जा सकता है । यही इस स्याद्वाद एवं अनेकान्त वाद रूप मोक्ष मार्ग की विशेषता है । . ...
सह संमइए णच्चा, धम्म-सारं सुणेत्तु वा । समुवट्ठिए उ अणगारे, पच्चक्खाय-पावए ।॥१४॥
कठिन शब्दार्थ - सह - साथ, संमइए - सन्मति अर्थात् निर्मल बुद्धि के द्वारा, धम्मसारं - धर्म के सार को, सुणेत्तु - सुन कर, समुवट्ठिए - आचरण के लिए उपस्थित, पच्चक्खायपावए - पाप का प्रत्याख्यान करने वाला।
भावार्थ - सन्मति अर्थात् निर्मल बुद्धि के द्वारा अथवा गुरु आदि से सुनकर धर्म के सत्य स्वरूप को जानकर ज्ञान आदि गुणों के उपार्जन में प्रवृत्त साधु पाप को छोड़कर निर्मल आत्मा वाला होता है ।
विवेचन - गाथा में 'संमइए' शब्द दिया है। जिसका अर्थ है सत्-मति (सन्मति) अथवा स्वमति। अपने विशिष्ट मतिज्ञान, श्रुतज्ञान एवं अवधिज्ञान द्वारा अथवा तीर्थङ्कर, गणधर एवं आचार्य भगवन्तों आदि द्वारा धर्म के स्वरूप को सुन कर धर्म के सार रूप चारित्र को प्राप्त करना चाहिए। . चारित्र को प्राप्त करके पहले बांधे हुए कर्मों का क्षय करने के लिये पण्डित वीर्य द्वारा साधु उत्तरोत्तर गुणों की वृद्धि करता हुआ एवं पाप का प्रत्याख्यान करके निर्मल बनकर मुक्ति को प्राप्त करे । .
जं किंचुवक्कम जाणे, आउक्खेमस्स अप्पणो । तस्सेव अंतरा खिप्पं, सिक्खं सिक्खेज्ज पंडिए ॥१५॥
कठिन शब्दार्थ - किंच - कुछ भी, उवक्कम - कोई उपक्रम, आउखेमस्स - आयु क्षेम का, तस्सेव अंतरा - उसके अंतर में ही, खिप्पं - शीघ्र, सिक्खं - संलेखना रूप शिक्षा का, सिक्खेजसेवन करे ।
भावार्थ - विद्वान् पुरुष किसी प्रकार अपनी आयु का क्षयकाल यदि जाने तो उसके पहले ही संलेखना रूप शिक्षा को ग्रहण करे ।
विवेचन - जिससे आयु क्षय को प्राप्त होती है उसे उपक्रम कहते हैं। यदि साधु किसी प्रकार अपनी आयुष्य का उपक्रम (विनाश का कारण) जान ले। उसे जानकर आकुल-व्याकुल न बने तथा लम्बे जीवन की आकांक्षा से रहित होकर संलेखना आदि करके पण्डित मरण को स्वीकार करे। पण्डित मरण के तीन भेद बतलाये गये हैं - भक्त परिज्ञा (तिबिहार अथवा चौविहार) तथा इङ्गित मरण या इङ्गणीमरण (मर्यादित जगह में शरीर के अवयवों को चलाना फिराना आदि छूट रखकर चौविहार) तथा पादपोपगमन (कटी हुई वृक्ष की डाली की तरह शरीर के किसी भी अवयव को हिलाये डुलाये बिना
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