________________
अध्ययन ८
.
.
२१५
निश्चल रहना) इन तीनों पण्डित मरणों में से किसी एक पण्डित मरण को स्वीकार करके आयुष्य को पूरा करे एवं धर्मध्यान और शुक्लध्यान में तल्लीन रहे। .. जहा कुम्मे सअंगाई, सए देहे समाहरे ।
एवं पावाई मेहावी, अझप्पेण समाहरे ॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - कुम्मे - कूर्म-कछुआ, सअंगाई - अपने अंगों को, देहे - शरीर में, समाहरे - समेट लेता है, अज्झप्पेण - अध्यात्म-शुभ ध्यान से । ___ भावार्थ - जैसे कछुआ अपने अङ्गों को अपनी देह में संकुचित कर लेता है इसी तरह विद्वान् . पुरुष धर्म ध्यान की भावना से अपने पापों को संकुचित कर दे अर्थात् अपनी आत्मा को पापों से सर्वथा दूर रखे।
साहरे हत्थपाए य, मणं पंचेंदियाणि य । पावगं च परीणामं, भासा-दोसंच तारिसं ।।१७॥
कठिन शब्दार्थ-साहरे - संकुचित (संयमित) रखे, पावर्ग- पाप रूप, परीणाम - परिणाम को, भासादोसं-भाषा के दोषों का। ___भावार्थ - साधु अपने हाथ पैर को स्थिर रखे जिससे उनके द्वारा किसी जीव को दुःख न हो तथा मन के द्वारा बुरा संकल्प और पांच इन्द्रियों के विषयों में रागद्वेष तथा पाप परिणाम और पापमय भाषा दोष को वर्जित करे ।
विवेचन - आत्म-साधना के लिये कायिक स्थिरता पर भी अधिक जोर दिया गया है । शरीर की चंचलता चंचल मन की निशानी है । अतः शारीरिक चंचलता पर काबू पाकर कितने ही अंशों में मन पर भी काबू किया जा सकता है । यह बात पाश्चात्य विद्वान् भी मानते हैं।
“A would be psychologist must first learn, not to make any movement of the body with out any reason."
अर्थात्जो व्यक्ति मानसिक शक्ति से सम्पन्न होना चाहता है वह पहले यह सीखे कि अकारण अपना अंग संचालित न होने दे।
अणु माणं चं मायं च, तं परिणाय पंडिए । साया-गारव-णिहुए, उवसंते णिहे चरे ।। १८॥
कठिन शब्दार्थ - अणु - अणुमात्र-थोड़ा भी, परिण्णाय - जान कर, साया-गारव-णिहुए - सुखशीलता से रहित, उवसंते - उपशांत, अणिहे - माया रहित ।
भावार्थ - साधु थोड़ा भी मान और माया न करे । मान और माया का फल बुरा है इस बात को
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org