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अध्ययन १ उद्देशक १ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
यदि ये दो बातें भली प्रकार से समझ में आ जाय तो प्राणी नये कर्म उपार्जन नहीं करता है और पुराने कर्म बन्धनों को तोड़ कर मुक्त हो सकता है। । एए गंथे विउक्कम्म, एगे समण माहणा ।
अयाणंता विउस्सित्ता, सत्ता कामेहिं माणवा ॥६॥
कठिन शब्दार्थ - गंथे - ग्रंथों (बंधनों) को, विउक्कम्म - व्युतक्रम्य-छोड़ कर, समण माहणा - श्रमण और ब्राह्मण, अयाणंता - नहीं जानते हुए-अज्ञानी, विउस्सित्ता - स्व सिद्धान्तों में बद्ध, सत्ता - आसक्त, कामेहिं - कामभोगों में ।
भावार्थ - कोई कोई श्रमण और ब्राह्मण इन बन्धनों को नहीं जान कर अज्ञान से अनेक प्रकार की कल्पना में फंस जाते हैं और वे अज्ञानी मनुष्य काम भोगों में डूब जाते हैं ।
विवेचन - प्रथम अध्ययन का अर्थाधिकार पर समय वक्तव्यता भी है इसलिये पांच गाथा तक स्व-सिद्धान्त का कथन करने के बाद अब पर-सिद्धान्त बतलाने के लिये शास्त्रकार कहते हैं । टीकाकार ने इस गाथा की निम्न आशय की टीका की है - 'कोई-कोई शाक्य भिक्षु और बृहस्पति (नास्तिक मत प्रवर्तक) मतावलम्बी इन अर्हत्कर्थित शास्त्रों को छोड़ कर, अपने स्वकल्पित शास्त्रसिद्धान्तों में अत्यन्त आग्रह रखते हैं वे अज्ञानी मानव काम भोगों में आसक्त हो जाते हैं । ____ संति पंच महब्भूया, इहमेगेसिमाहिया ।
पुढवी आऊ तेऊ वा, वाऊ आगास पंचमा ॥७॥
कठिन शब्दार्थ - महब्भूया - महाभूत, इह - इस लोक में, एगेसिं - किन्हीं के, आहिया - कहा है, पुढवी- पृथ्वी, आऊ - अप्-जल, तेऊ - तेजस्काय, वाऊ - वायुकाय, आगास - आकाश, पंचमा- पांचवां । .
भावार्थ - पञ्च महाभूतवादियों का कथन है कि इस लोक में पृथिवी, अप् (जल), तेजस्अग्नि, वायु और पाँचवाँ आकाश, ये पाँच महाभूत हैं।
एए पंच महब्भूया, तेब्भो एगो त्ति आहिया । अह तेसिं विणासेणं, विणासो होइ देहिणो ॥८॥
कठिन शब्दार्थ - तेब्भो - इन से, एगो त्ति - एक-आत्मा विणासेणं - नाश से, होइ - होता है, देहिणो - आत्मा का ।
भावार्थ - पूर्व गाथा में कहे हुए पृथिवी आदि पाँच महाभूत हैं। इन पाँच महाभूतों से एक आत्मा उत्पन्न होता है ऐसा लोकायतिक कहते हैं । इन महाभूतों के नाश होने से उस आत्मा का भी नाश हो जाता है यह वे मानते हैं ।
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