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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 प्रकार बाहर के मैल को धोने की शक्ति जल में देखी जाती है इसी प्रकार अन्दर की शुद्धि भी जल से हो जाती है। कुछ लोगों की मान्यता है कि अग्निहोत्र आदि यज्ञ करने से स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति होती है ऐसी तापस और ब्राह्मण आदि की मान्यता है। वे युक्ति देते हैं कि अग्नि सोने के मैल को जलाती है इसलिये अग्नि में मैल को जलाने की शक्ति देखी जाती है इसी प्रकार वह आत्मा के आंतरिक पाप को भी जला डालती है शास्त्रकार फरमाते हैं कि यह सब अज्ञानियों की मान्यता है ।
पाओ सिणाणादिसु णत्थि मोक्खो, खारस्स लोणस्सअणासएणं । ते मज्ज-मंसं लसुणं च भोच्चा, अण्णत्थ वासं परिकप्पयंति ॥ १३॥
कठिन शब्दार्थ - पाओसिणाणादिसु - प्रातःकालीन स्नान से, खारस्स लोणस्स - क्षार नमक के, अणासएणं - न खाने से, मजमंसं - मद्य, मांस, लसुणं - लशुन, भोच्चा - खा कर, अण्णत्थ - मोक्ष के सिवाय अन्य स्थान, वासं परिकप्पयंति - निवास करते हैं ।
भावार्थ - प्रभातकाल के स्नान आदि से मोक्ष नहीं होता है तथा नमक न खाने से भी मोक्ष नहीं होता है वे अन्यतीर्थी मद्य मांस और लशुन खाकर संसार में भ्रमण करते हैं ।
विवेचन - पूर्वोक्त प्रकार से असम्बद्ध प्रलाप करने वाले अन्य तीर्थियों को उत्तर देने के लिये . शास्त्रकार फरमाते हैं कि, जो पुरुष पापों का त्याग नहीं करते हैं, वे शील (चारित्र) रहित हैं । वे प्रातः काल हाथ पैर धोना स्नान करना आदि से मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते हैं । क्योंकि जल का उपयोग करने से जल के जीवों का घात होता है । जीव घात से कदापि मुक्ति प्राप्त नहीं होती है। जल बाय शद्धि कर सकता है वह द्रव्य शद्धि है । अन्दर की शद्धि भावों की शद्धि से होती है यदि भाव रहित जीव की भी जल से अन्दर की शुद्धि हो जाती हो तो मछली मारकर आजीविका करने वाले मल्लाह आदि को भी जल स्नान से मुक्ति हो जानी चाहिए । पांच प्रकार के नमक के त्याग मात्र से भी मुक्ति नहीं मिलती है । अतः "नमक नहीं खाने से मुक्ति मिल जाती है" यह कथन युक्ति रहित है । क्योंकि एक नमक ही रस की पुष्टि करता है यह एकान्त नहीं है क्योंकि दूध, दही, घी, तैल और मीठम ये पांच विगय भी रस के पोषक हैं । तथा उक्त वादी से पूछना चाहिए कि द्रव्य से नमक का त्याग करने से मोक्ष मिलता है अथवा भाव से? यदि द्रव्य से कहो तो जिस देश में नमक नहीं होता है उस देश के सभी लोगों का मोक्ष हो जाना चाहिए पर ऐसा देखा नहीं जाता है। और यह इष्ट भी नहीं है । यदि भाव से कहो तो भाव ही प्रधान है, द्रव्य नहीं । जो लोग मद्य, मांस, लहसुन आदि खाकर संसार में निवास करते हैं । क्योंकि उनका अनुष्ठान संसार में निवास करने योग्य ही होता है । वे अज्ञानी सम्यग्दर्शन ज्ञान, चारित्र, रूप मोक्ष मार्ग का अनुष्ठान नहीं करते हैं ।
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