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अध्ययन ६
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कठिन शब्दार्थ - रुक्खेसु - वृक्षों में, णाए - ज्ञात-प्रसिद्ध, सामली - शाल्मली, जस्सिं (जंसि)- जिस पर, रई - आनंद का सुवण्णा - सुपर्ण कुमार, वणेसु - वनों में, णंदणं - नंदन वन को सेढें- श्रेष्ठ, भूइपण्णे - भूतिप्रज्ञ-उत्कृष्ट ज्ञान दर्शन वाले ।
भावार्थ - जैसे वृक्षों में सुवर्ण नामक देवताओं का क्रीडास्थान शाल्मली वृक्ष श्रेष्ठ हैं तथा वनों में नन्दनवन श्रेष्ठ है इसी तरह ज्ञान और चारित्र में भगवान् महावीर स्वामी सबसे श्रेष्ठ हैं ।
विवेचन - जैसे देवकुरु में स्थित प्रसिद्ध शाल्मली वृक्ष सब वृक्षों में श्रेष्ठ है। क्योंकि वहाँ भवनपति जाति के सुपर्ण नामक भवनपति विशेष वहाँ आकर क्रीड़ा करते हैं तथा भद्रशाल सौमनस और पण्डक इन तीन वनों में नन्दनवन श्रेष्ठ है। इसी तरह भगवान् भी समस्त पदार्थों को प्रकट करने वाले केवलज्ञान, केवल दर्शन और क्षायिक यथाख्यात चारित्र के द्वारा सब में प्रधान और श्रेष्ठ हैं।
थणियं व सहाण अणुत्तरे उ, चंदो व ताराण महाणुभावे। गंधेसु वा चंदणमाहु सेठें, एवं मुणीणं अपडिण्णमाहु ॥ १९ ॥
कठिन शब्दार्थ - थणियं- स्तनित-मेघ गर्जन, सहाण - शब्दों में, अणुत्तरे - प्रधान, ताराण - ताराओं में, महाणुभावे - महानुभाव, गंधेसु - गंधों में, चंदणं - चंदन, आहु - कहा है, मुणीणंमुनियों में, अपडिण्णं - अप्रतिज्ञ-अनासक्त।
भावार्थ - जैसे सब शब्दों में मेघ का गर्जन प्रधान है और सब ताराओं में चन्द्रमा प्रधान है तथा सब गन्धवालों में जैसे चन्दन प्रधान है इसी तरह सब मुनियों में कामना रहित भगवान् महावीर स्वामी प्रधान हैं। - विवेचन - जैसे शब्दों में मेघ की गर्जना का शब्द प्रधान है तथा सब ज्योतिषी देवों में चन्द्रमा प्रधान है तथा गन्ध वाले पदार्थों में चन्दन (गोशीर्ष या मलयज-बावना चन्दन) प्रधान है। इसी तरह मुनियों में इसलोक तथा परलोक के सुख की कामना नहीं करने वाले भगवान् महावीर स्वामी सर्वश्रेष्ठ
जहा सयंभू उदहीण सेटे, णागेसु वा धरणिंदमाहु सेटे । खोओदए वा रस वेजयंते, तवोवहाणे मुणि वेजयंते ॥ २० ॥ .
कठिन शब्दार्थ - उदहीण - समुद्रों में, सयंभू - स्वयंभू, णागेसु - नागकुमार देवों में, धरणिंद - धरणेन्द्र, खोओदए - इक्षु रसोदक, रस - रस, वेजयंते - वैजयंत प्रधान श्रेष्ठ, तवोवहाणे - तप में।
भावार्थ - जैसे सब समुद्रों में स्वयम्भूरमण समुद्र प्रधान है तथा जैसे नागों में धरणेन्द्र सर्वोत्तम
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