________________
महावीर स्तुति नामक छठा अध्ययन
उत्थानिका - इसके पहले पांच अध्ययन कहे गये हैं उनका कथन श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने किया है। इसलिये इस अध्ययन में उनका चरित्र बताया जाता है क्योंकि कथन करने वाले पुरुष के महत्त्व से ही शास्त्र का महत्त्व होता है। इस अध्ययन का नाम महावीर स्तुति है। नियुक्तिकार ने 'महावीर' शब्द का 'निक्षेप' आदि के द्वारा बहुत विस्तृत अर्थ किया है उन सब में से यहाँ 'महत्' शब्द का अर्थ प्रधान लिया गया है जिसका अर्थ है - जितने भी प्रकार के वीर । माने जाते हैं उन सब में प्रधान वीर अर्थात् सर्वश्रेष्ठ वीर का यहां ग्रहण किया गया है। जैसा कि कहा है -
कोहं माणं च मायं, लोभं पंचेंदियाणि य। दुज्जयं चेव अप्पाणं,.सव्वमप्पे जिए जियं ॥१॥ जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुजए जिणे । एक्कं जिणेज अप्पाणं, एस से परमो जओ ॥ २ ॥
अर्थ - क्रोध, मान, माया और लोभ, पांच इन्द्रियाँ दुर्जेय हैं। इसलिये आत्मा को जीत लेने पर सब जीत लिये जाते हैं ॥१॥
जो पुरुष युद्ध में दस लाख (१०००x१००० = १००००००) योद्धाओं को जीत लेता है वह युद्ध वीर शूर वीर कहलाता है। परन्तु जो व्यक्ति अपनी आत्मा पर विजय प्राप्त कर लेता है अर्थात् मन, इन्द्रियां और कंषायों को जीत लेता है उसकी जीत परम जय कहलाती है। वह परम शूर वीर अर्थात् सर्वोत्कृष्ट परम शूरवीर कहलाता है। तथा -
. एक्को परिभमउ जए वियइं, जिणकेसरी सलीलाए। कंदप्पट्ठदाढो मयणो, विड्डारिओ जेणं।
अर्थ - जिनेन्द्र भगवान् ही एक विकट एवं परम सिंह है जिन्होंने काम रूप तीक्ष्ण दाढ वाले मदन (काम) को चीर डाला है। अर्थात् कामवासना को सर्वथा नष्ट कर दिया है।
उपरोक्त कथन से यह स्पष्ट है कि सर्वश्रेष्ठ 'वीर' भगवान् महावीर स्वामी हैं। जैसा कि आचाराङ्ग सूत्र दूसरे श्रुतस्कन्ध के पन्द्रहवें अध्ययन में कहा है -
"समणे भगवं महावीरे कासवगोत्तेणं, तस्स णं इमे तिण्णि णामधेज्जा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org