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ते तिप्पमाणा तलसंपुडं व, राइंदियं तत्थ थणंति बाला । गति ते सोणिय - पूय-मंसं, पज्जोइया खार - पइद्धियंगा ॥ २३ ॥ ताड़ के पत्रों का संपुट, गलंति - गिरते हैं, सोणिय - शोणित-रक्त, प्रद्योतित-आग में जलाये जाते हुए, खार-पइद्धियंगा - अंगों में
अध्ययन ५ उद्देशक १
कठिन शब्दार्थ - तलसंपुढं पूयं पीव, मंसं मांस, पज्जोइया खार छिड़के हुए ।
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भावार्थ - वे अज्ञानी नारकी जीव अपने अङ्गों से रुधिर टपकाते हुए सूखे हुए तालपत्र के समान रातदिन शब्द करते रहते हैं तथा आग में जलाकर पीछे से अङ्गों में खार लगाये गये हुए वे नैरयिक जीव रक्त, पीव और मांस का स्राव करते रहते हैं ।
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जड़ ते सुया लोहिय-पूय पाई, बालागणी तेयगुणा परेणं ।
कुंभी महंताऽहिय- पोरुसिया, समूसिया लोहियपूयपुण्णा ।। २५ ॥
कठिन शब्दार्थ पाई पकाने वाली, अहियपोरुसिया पुरुष प्रमाण से अधिक, समूसिया - ऊँची, लोहियपूयपुण्णा - रक्त और पीव से भरी हुई ।
भावार्थ - रक्त और पीव को पकाने वाली तथा नवीन अग्नि के तेज से युक्त होने के कारण अत्यन्त ताप युक्तं एवं पुरुष के प्रमाण से भी अधिक प्रमाण वाली, रक्त और पीव से भरी हुई कुम्भी नामक नरकभूमि कदाचित् तुमने सुनी होगी ।
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पखितासुं पययंति बाले, अट्टस्सरे ते कलुणं रसंते ।
तण्हाइया ते तउतंब तत्तं, पज्जिज्जमाणाऽट्टतरं रसंति ॥ २६ ॥
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कठिन शब्दार्थ - अट्टस्सरे आर्त्तस्वर, कलुणं करुण, रसंते रुदन करते हुए, तण्हाइया प्यास से व्याकुल, तउतंब. तत्तं तप्त-गर्म सीसा और ताम्बा, पज्जिज्जमाणा - पिलाये जाते हुए, अट्टतरं रसंति - आर्त स्वर से रूदन करते हैं ।
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भावार्थ - परमाधार्मिक, आर्त्तनादपूर्वक करुणक्रन्दन करते हुए अज्ञानी नैरयिक जीवों को रक्त और पीव से भरी हुई कुम्भी में डालकर पकाते हैं तथा प्यासे हुए उन बिचारों को सीसा और ताँबा गला कर पिलाते हैं इस कारण वे नैरयिक जीव और ज्यादा रुदन करते हैं ।
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अप्पेण अप्पं इह वंचइत्ता, भवाहमे पुव्व-सए - सहस्से ।
चिति तत्थ बहुकूर- कम्मा, जहा कडं कम्म तहा से भारे ॥। २७ ॥
कठिन शब्दार्थ - चइत्ता - वंचित करके, भवाहमे - अधम भवों को, पुव्वसए - सहस्से पूर्व के सैकड़ों हजारों बहुकूरकम्मा - बहुत क्रूर कर्म करने वाले, जहा कडं कम्मं- जैसा कर्म किया है, भारे - भार (दुःखपरिमाण) ।
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