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अध्ययन ४ उद्देशक २ 000000000000000000000000000000000००००००००००००००००००००००००००००००० लिये चूर्ण लाओ तथा छाता जूता और शाक काटने के लिये छुरी लाओ । मुझको नीलवस्त्र रँगाकर लादो ।
सुफणिं च सागपागाए, आमलगाइं दगाहरणं च । . तिलगकरणि मंजणसलागं, प्रिंसु मे विहूणयं विजाणेहि ॥ १० ॥
कठिन शब्दार्थ - सुफणिं - तपेली को, सागपागाए - शाक पकाने के लिए, आमलगाई - आंवला, दगाहरणं - जल रखने का पात्र-कलश, तिलगकरणि मंजणसलागं - तिलककरणी और अंजन लगाने की सलाई, प्रिंसु - गर्मी में, विहूणयं - पंखा । ... भावार्थ- स्त्री शीलभ्रष्ट पुरुष से कहती है कि हे प्रियतम ! शाक पकाने के लिये तपेली लाओ तथा आंवला, जल रखने का पात्र, तिलक और अंजन लगाने की सलाई एवं गर्मी में हवा करने के लिये पंखा लाकर मुझको दो ।
संडासगं च फणिहं च, सीहलिपासगं च आणाहि । आदंसगं च पर्यच्छाहि, दंत-पक्खालणं पवेसाहि ॥११॥
कठिन शब्दार्थ - संडासगं - संदशक-चिपीया, फणिहं - कंघी, सीहलिपासगं - सीहलिपाशक.. चोटी बांधने के लिए ऊन का बना कंकण, आदंसगं - आदर्शक-दर्पण, दंतपक्खालणं- दंत प्रच्छालनकदातुन, दंत मंजन ।
.भावार्थ - स्त्री कहती है कि हे प्रियतम ! नाक के केशों को उपाडने के लिये चिपीया लाओ, केश संवारने के लिये कंघी और चोटी बाँधने के लिये ऊन की बनी आँटी, मुख देखने के लिये दर्पण तथा दांत साफ करने के लिये दन्तमञ्जन लाओ ।
पूयफलं तंबोलयं, सूई सुत्तगं च जाणाहि । . कोसं च मोयमेहाए, सुप्पुक्खलगं च खारगालणं च ॥ १२ ॥
- कठिन शब्दार्थ - पूयफलं - पूगफल-सुपारी, तंबोलयं - तांबूल-पान, सुत्तगं - सूत, मोय मेहाए - मूत्र के लिए, कोसं - कोश-पात्र, सुप्पुक्खलगं - सूप, ऊखली, खारगालणं - क्षार गलाने का पात्र ।
भावार्थ - स्त्री कहती है कि हे प्रियतम ! पान, सुपारी, सूई, सूत, पेशाब करने के लिये बर्तन, सूप, ऊखली एवं खार गलाने का बर्तन लाकर दो ।
चंदालगं च करगं च, वच्च घरं च आउसो ! खणाहि । सरपाययं च जायाए, गोहरगं च सामणेराए ॥ १३॥
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