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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
कठिन शब्दार्थ - वत्थाणि - वस्त्रों को, पडिलेहेहि - देख, गंधं - सुगंधि पदार्थ, रओहरणंरजोहरण, कासवगं - काश्यप-नाई ।
भावार्थ - हे साधो ! मेरे कपड़े पुराने हो गये हैं इसलिये मुझको नये कपड़े लाकर दो। मेरे लिये अन्न और जल लाओ । तथा गन्ध और रजोहरण लाकर मुझको दो। मैं लोच की पीडा नहीं सह सकती हूं इसलिये मुझको नाई से बाल कटाने की आज्ञा दो ।
विवेचन - इस प्रकार मांग बढ़ाते बढ़ाते, भिक्षु भिक्षुणी दोनों पूरे गृहस्थ बन जाते हैं । अदु अंजणिं अलंकारं, कुक्ययं मे पयच्छाहि । लोद्धं च लोद्धकुसुमं च, वेणु-पलासियं च गुलियं च ॥ ७ ॥
कठिन शब्दार्थ - अंजणिं - अंजनदानी, अलंकारं - अलंकार-आभूषण, कुक्कययं - घूघुरूदार वीणा, पयच्छाहि - लाकर दो, लोद्धं - लोध्र का फल, लोद्धकुसुमं - लोध्र का फूल वेणू पलासियं - बांस की लकड़ी, गुलियं - गुटिका (औषध की गोली)। . . .
भावार्थ - स्त्री में अनुरक्त साधु से स्त्री कहती है कि हे साधो ! मुझको अञ्जन का पात्र, भूषण तथा घुघूरूदार वीणा लाकर दो तथा लोघ्र का फल और फूल लाओं एवं एक बाँस की लकडी और पौष्टिक औषध की गोली भी लाओ।
कुटुं तगरं च अगरुं, संपिटुं सम्म उसिरेणं । तेल्लं मुहुभिंजाए, वेणुफलाइं सण्णिधाणाए ॥८॥
कठिन शब्दार्थ - कुटुं - कुष्ट, तगरं - तगर, अगरु - अगर, संपिटुं - पीसा हुआ, सम्मं - साथ, उसिरेणं - उशीर (खस) के मुहुभिजाए (भिलिंजाए)- मुंह पर लगाने के लिए, वेणुफलाइं - बांस की बनी पेटी, सण्णिधाण्णाए - वस्त्र आदि रखने के लिए। .
भावार्थ - स्त्री कहती है कि हे प्रिये ! उशीर के जल में पीसा हुआ कुष्ट, तगर और अगर लाकर मुझको दो तथा मुख पर लगाने के लिये तैल और कपड़ा वगैरह रखने के लिये बांस की बनी हुई एक पेटी लाओ।
णंदी-चुण्णगाई पाहराहि, छत्तोवाणहं च जाणाहि। सत्थं च सूवच्छेज्जाए, आणीलं च वत्थयं रयावेहि॥९॥
कठिन शब्दार्थ - णंदी चुण्णगाई - नंदी चूर्ण, छत्तोवाणहं- छाता और जूता, सत्थ - शस्त्र, सूवच्छेज्जाए - शाक काटने के लिए, आणीलं - नीले रंग से, वत्थयं - वस्त्र को, रयावेहि - रंगा कर लाओ।
भावार्थ - स्त्री अपने में अनुरक्त पुरुष से कहती है कि - हे प्रियतम ! मुझको ओठ रंगने के
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