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अध्ययन ४ उद्देशक २ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
कठिन शब्दार्थ - केसिया - केश वाली, मए - मुझ, केसाण - केशों का, वि - भी, हं - मैं, लुचिस्सं - लोच कर दूंगी, णणत्थ - अन्यत्र नहीं ।
भावार्थ - स्त्री कहती है कि हे भिक्षो ! यदि मुझ केश वाली स्त्री के साथ विहार करने में तू लज्जित होता है तो मैं इसी जगह अपने केशों को लोच कर देती हूँ परन्तु मेरे बिना तू किसी दूसरी जगह न जाओ अर्थात् मेरे बिना तुम क्षण भर भी न रहो। यही मैं आपसे प्रार्थना करती हूँ। आप जो कुछ भी मुझको आज्ञा देंगे वह सब कार्य मैं करूंगी।
अह णं से होइ उवलद्धो, तो पेसंति तहाभूएहिं । अलाउच्छेदं पेहेहि, वग्गुफलाइं आहराहि त्ति ॥४॥
कठिन शब्दार्थ - उवलद्धो - उपलब्ध-वश में, पेसंति तहाभूएहिं - नौकर के समान कार्य में : प्रेरित करती है, अलाउच्छेद- तुम्बा काटने के लिए चाकू लाओ, पेहेहि - देखो, वग्गुफलाइं - अच्छे फल, आहराहि - लाओ। .
भावार्थ - साधु की चेष्टा और आकार आदि के द्वारा जब स्त्री यह जान लेती है कि यह मेरे वश में हो गया है तो वह अपने नौकर के समान कार्य करने के लिए उसे प्रेरित करती है । वह कहती है कि तुम्बा काटने के लिये छुरी लावो तथा मेरे लिये स्वादिष्ट फल लाओ।
विवेचन - जो स्त्री भिक्षु को पतित करके, केवल विषय-वासना के लिये ही सिर मुंडाती है वह अपनी भोगेच्छा को कब तक दबा सकती है । उसकी भोगेच्छा किस प्रकार विशाल होती जाती है और पुरुष उसकी भोगेच्छा में किस प्रकार एक दयनीय कीड़ा बन जाता है, इसका वास्तविक चित्रण शास्त्रकार ने किया है ।
दारूणि सागपागाए, पज्जोओ वा भविस्सइ राओ। पायाणि य मे रयावेहि, एहि ता मे पिट्ठओ मद्दे ॥५॥
कठिन शब्दार्थ - दारूणि - लकड़ी लाओ, सागपागाए - शाक पकाने के लिए, पज्जोओ - प्रकाश, पायाणि - पात्रों को अथवा पैर को, रयावेहि - रंग दो, एहि - आओ, पिट्ठओ - पीठ, मद्दे - मर्दन कर दो।
भावार्थ - हे साधो ! शाक पकाने के लिये लकड़ी लाओ, रात में प्रकाश के लिये तैल लाओ । मेरे पात्रों को अथवा मेरे पैरों को रंग दो । इधर आवो मेरी पीठ मल दो ।
वत्थाणि य मे पडिलेहेहि, अण्णं पाणं च आहराहि त्ति । गंधं च रओहरणं च, कासवगं च मे समणुजाणाहि ॥६॥
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