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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
कठिन शब्दार्थ - चंदालगं - चन्दालक पूजा पात्र, करग - करक-जल व मद्य रखने का पात्र, वच्चघरं - वक़गृह-संडास, खणाहि - खोद दो, सरपाययं - शरपात-धनुष, जायाए - पुत्र के लिए, गोहरगं - तीन वर्ष का बैल, सामणेराए - श्रमण पुत्र के लिए ।
भावार्थ - स्त्री कहती है कि हे प्रियतम ! देवता का पूजन करने के लिये तांबा का पात्र तथा जल और मद्य रखने का पात्र मुझ को लादो । मेरे लिये पाखाना बनवा दो । अपने पुत्र को खेलने के लिये एक धनुष ला दो तथा तीन वर्ष का एक बैल लादो जो अपने पुत्र को गाडी में वहन करेगा। .'
घडिगं च सडिंडिमयं च, चेलगोलं कुमारभूयाए । वासं समभिआवण्णं, आवसहं च जाण भत्तं च ॥१४॥
कठिन शब्दार्थ - घडिगं - घटिका, गुडिया, सडिंडिमयं - डमरु बाजा, चेलगोलं - कपडे की बनी गेंद, कुमार भूयाए - कुमार के लिए, वासं - वर्षा, समभिआवण्णं - समीप आ गयी है, आवसहं - निवास करने योग्य स्थान-मकान ।
भावार्थ - शीलभ्रष्ट साधु से उसकी प्रियतमा कहती है कि हे प्रियतम ! अपने कुमार को खेलने के लिये मिट्टी की गुड़िया, बाजा और कपड़े की बनी हुई गेंद ला दो । वर्षा ऋतु आ गई है इसलिये वर्षा से बचने के लिये मकान और अन्न का प्रबन्ध करो ।
आसंदियं च णव सुत्तं, पाउल्लाइं संकमट्ठाए । अदू पुत्त दोहलहाए, आणप्पा हवंति दासा वा ॥१५॥
कठिन शब्दार्थ - आसंदियं - मंचिया, खटिया, णवसुत्तं - नये सूत की, पाउल्लाइं - पादुक खडाऊ, संकमट्ठाए - घूमने के लिये, पुत्त दोहलट्ठाए - गर्भस्थ पुत्र दोहद पूर्ति के लिए, आणप्पाआज्ञा, दासा वा - दास की तरह ।
भावार्थ - हे प्रियतम ! नये सूतों से बनी हुई एक मॅचिया बैठने के लिये लाओ तथा इधर उधर घूमने के लिये एक खडाऊ लाओ । मुझको गर्भ दोहद उत्पन्न हुआ है इसलिये अमुक वस्तु लाओ। इसस प्रकार स्त्रियां दास की तरह पुरुषों पर आज्ञा करती हैं।
जाए फले समुप्पण्णे, गेहसु वा णं अहवा जहाहि । अह पुत्तपोसिणो एगे, भारवहा हवंति उट्टा वा ॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - समुप्पण्णे - उत्पन्न होने पर, गेण्हसु - ग्रहण करो, गोद में लो, जहाहि - छोड़ दो, पुत्तपोसिणो - पुत्र के पोषण के लिए, भारवहा - भार वहन करने वाले हैं, उट्टा वा - ऊंट की तरह ।
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