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श्री सूयगडांग सूत्र श्रुतस्कन्ध १ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 षट्खण्डागम आदि ग्रन्थों को ही मान्य करती है । श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार भगवान् महावीर स्वामी की वाणी का सद्भाव आज भी है । सिर्फ बारहवाँ अंग दृष्टिवाद विच्छिन्न हो गया है । यह तो सब तीर्थङ्करों के समय दो पाट तक ही रहता है फिर विच्छिन्न हो जाता है, सिर्फ पूर्वो का ज्ञान शेष रहता है।
बारह अङ्ग सूत्रों में आचारांग का सर्वप्रथम नम्बर है । इसमें चारित्राचार का विशेष रूप से वर्णन किया है । सम्यग्ज्ञान के सद्भाव में ही चारित्राचार का महत्त्व है । जैसे कि कहा गया है -
पढमं णाणं तओ दया एवं चिट्ठइ सव्वसंजए । अण्णाणी किं काही, किं वा णाही सेयपावगं ॥
- (दशवैकालिक सूत्र अ. ४ गाथा .१०) प्रथम ज्ञान पीछे दया, यह जिनमत का सार । ज्ञान सहित क्रिया करे, उतरे भवजल पार ॥
अतएव सूत्रकृतांग सूत्र में मुख्य रूप से ज्ञानाचार का वर्णन किया गया है । इसमें स्वसमय (स्व सिद्धान्त-जैन सिद्धान्त) पर समय (पर सिद्धान्त अर्थात् ३६३ पाखण्ड मत) की विचारधारा का वर्णनं किया गया है । मिथ्यात्व का खण्डन कर स्वसिद्धान्त-सच्ची मान्यता की स्थापना की गई है तथा जीव अजीव पुण्य पाप लोक अलोक आदि का भी वर्णन किया गया है - इसलिये सूत्रकृताङ्ग सूत्र का बहुत महत्त्व है । इसलिये पूर्वाचार्यों का कथन है कि - मोक्षार्थी आत्माओं को सर्वप्रथम स्व सिद्धान्त का ज्ञान करना आवश्यक है । इस सूत्र पर आगममनिषी गूढ तत्त्ववेता श्री शीलांकाचार्य की संस्कृत की टीका है । उसमें उन गूढ अर्थों का स्पष्टीकरण किया है । वह संस्कृत टीका मूल रूप से आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित हुई है । उस संस्कृत टीका का भाषानुक्सद युगद्रष्टा महान् ज्योतिर्धर पूज्यश्री श्रीमज्जैनाचार्य श्री जवाहराचार्य के तत्त्वावधान में हुआ है। यहां सिर्फ भावानुवाद दिया जा रहा है।
बुझिज ति तिउट्टिग्जा, बंधणं परिजाणिया । किमाह बंधणं वीरो, किं वा जाणं तिउट्टइ ? ॥१॥ · कठिन शब्दाथै - बुझिजत्ति - बोध प्राप्त करना चाहिये, तिउट्टिजा - तोड़ना चाहिये, बंधणंबंधन को, परिजाणिया - जान कर, किं - क्या, आह - बताया है, वीरो - वीर प्रभु ने, तिउट्टइ - तोड़ता है ।
भावार्थ - श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बू स्वामी से फरमाते हैं कि - "हे आयुष्मन् जम्बू ! समझो और बन्धन के स्वरूप को जान कर उसे तोड़ दो । जम्बू स्वामी ने जिज्ञासा प्रकट की कि - 'हे भगवन् ! प्रभु वीर ने बन्धन क्या बताया है ? और क्या उसे जान कर तोड़ा जा सकता है ?'
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