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स्थान ५ उद्देशक ३
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४. भाव की अपेक्षा धर्मास्तिकाय वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श रहित है। अरूपी है तथा चेतना रहित अर्थात् जड़ हैं।
५. गुण की अपेक्षा गति गुण वाला है अर्थात् गति परिणाम वाले जीव और पुद्गलों की गति में सहकारी होना इसका गुण है।
अधर्मास्तिकाय के पाँच प्रकार - अधर्मास्तिकाय द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा धर्मास्तिकाय जैसा ही है।
गुण की अपेक्षा अधर्मास्तिकाय स्थिति गुण वाला है। आकाशास्तिकाय के पाँच प्रकार - आकाशास्तिकाय द्रव्य, काल और भाव की अपेक्षा धर्मास्तिकाय जैसा ही है।
क्षेत्र की अपेक्षा आकाशास्तिकाय लोकालोक व्यापी है और अनन्त प्रदेशी है। लोकाकाश धर्मास्तिकाय की तरह असंख्यात प्रदेशी है।
गुण की अपेक्षा आकाशास्तिकाय अवगाहना गुण वाला है अर्थात् जीव और पुद्गलों को अवकाश देना ही इसका गुण है।
‘जीवास्तिकाय के पांच प्रकार - . १. द्रव्य की अपेक्षा जीवास्तिकाय अनन्त द्रव्य रूप है क्योंकि पृथक् पृथक् द्रव्य रूप जीव अनन्त हैं। . २. क्षेत्र की अपेक्षा जीवास्तिकाय लोक परिमाण है। एक जीव की अपेक्षा जीव असंख्यात प्रदेशी है और सब जीवों की अपेक्षा अनन्त प्रदेशी है।
३. काल की अपेक्षा जीवास्तिकाय आदि (प्रारम्भ), अन्त रहित है अर्थात् ध्रुव, शाश्वत और नित्य है। - ४. भाव की अपेक्षा जीवास्तिकाय वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श रहित है। अरूपी तथा चेतना गुण वाला है।
५. गुण की अपेक्षा जीवास्तिकाय उपयोग गुण वाला है। पुद्गलास्तिकाय के पाँच प्रकार - १. द्रव्य की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय अनन्त द्रव्य है। २. क्षेत्र की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय लोक परिमाण है और अनन्त प्रदेशी है। ३. काल की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय आदि अन्त रहित अर्थात् ध्रुव, शाश्वत और नित्य है। ४. भाव की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श सहित है यह रूपी और जड़ है। .५.. गुण की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय का ग्रहण गुण है अर्थात् औदारिक शरीर आदि रूप से ग्रहण
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