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स्थान ५ उद्देशक ३
७५ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 कयाइ ण भविस्सइ त्ति, भुवि भवइ भविस्सइ य, धुवे णियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे, भावओ अवण्णे अगंधे अरसे अफासे, गुणओ गमणगुणे य । अधम्मत्थिकाए अवण्णे एवं चेव, णवर गुणओ ठाणगुणे । आगासत्थिकाए अवण्णे एवं चेव णवरं खित्तओ लोगालोगप्पमाणमित्ते, गुणंओ अवगाहणागुणे, सेसं तं चेव। जीवस्थिकाए अवण्णे एवं चेव, णवरं दव्वओ जीवत्थिकाए अणंताई दव्वाइं, अरूवी जीवे सासए, गुणओ उवओगगुणे, सेसं तं चेव । पोग्गलत्थिकाए पंचवण्णे पंचरसे दुगंधे, अट्ठफासे रूवी अजीवे सासए अवट्ठिए जाव दव्वओ पोग्गलत्थिकाए अणंताई दव्वाई, खित्तओ लोगप्पमाणमित्ते, कालओ ण कयाइ णासी जाव णिच्चे, भावओ वण्णमंते गंधमंते रसमंते फासमंते गुणओ गहणगुणे।
पांच गतियाँ . पंच गईओ पण्णत्ताओ तंजहा - णिरयगई, तिरियगई, मणुयगई, देवगई, सिद्धिगई॥२९॥
कठिनशब्दार्थ - अत्थिकाया- अस्तिकाय, सासए - शाश्वत, अवटिए - अवस्थित, लोगदव्वेलोक द्रव्य-लोक में रही हुई, समासओ-संक्षेप में, लोगप्पमाणमित्ते- लोक प्रमाण, ध्रुवे- ध्रुव, णियएनियत, गमणगुणे - गमन गुण, ठाणगुणे - स्थिति गुण, लोगालोगप्पमाणमित्ते - लोकालोक प्रमाण, अवगाहणागुणे - अवकाश गुण, उवओगगुणे- उपयोग गुण, गहणगुणे - ग्रहण गुण ।
भावार्थ - पांच अस्तिकाय कही गई हैं यथा - धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय । धर्मास्तिकाय में वर्ण नहीं, गन्ध नहीं, रस नहीं, स्पर्श नहीं, अरूपी, अजीव, शाश्वत, अवस्थित और लोक में रही हुई है । वह धर्मास्तिकाय संक्षेप में पांच प्रकार की कही गई है यथा - द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से और गुण से । द्रव्य से धर्मास्तिकाय एक द्रव्य है । क्षेत्र से सारे लोक प्रमाण है । काल से भूतकाल में नहीं थी, वर्तमान काल में नहीं है और भविष्यत्काल में नहीं रहेगी, ऐसा नहीं किन्तु भूतकाल में थी, वर्तमान काल में हैं और भविष्यत्काल में रहेगी । यह ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य है । भाव की अपेक्षा वर्ण नहीं गन्ध नहीं रस नहीं स्पर्श नहीं और गुण की अपेक्षा गमनगुण वाला है । अधर्मास्तिकाय भी धर्मास्तिकाय की तरह वर्णादि से रहित है इतनी विशेषता है कि गुण की अपेक्षा स्थितिगुण वाला है । आकाशास्तिकाय भी इसी तरह वर्णादि रहित है किन्तु इतनी विशेषता है कि क्षेत्र की अपेक्षा लोकालोक प्रमाण है और गुण की अपेक्षा अवकाश गुण वाला है । बाकी सारा वर्णन धर्मास्तिकाय के समान है । जीवास्तिकाय
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