________________
श्री स्थानांग सूत्र
कोसलिए पंच धणुसयाई उड्डुं उच्चत्तेणं होत्था । भरहे णं राया चाउरंत चक्कवट्टी पंच धणु सयाई उड्डुं उच्चत्तेणं होत्था । बाहुबली णं अणगारे एवं चेव । बंभी णामज्जा एवं चेव । एवं सुन्दरी वि ॥ २५ ॥
कठिन शब्दार्थ - वक्खार वक्षस्कार, पुरओ सामने, दहा द्रह, उच्चत्तं ऊंचाई, मंदर चूलियाओ - मेरु पर्वतों की चूलिकाएं, अज्जा - आर्या, कोसलिए कौशल देश में उत्पन्न ।
भावार्थ - जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के पूर्व दिशा में सीता महानदी के उत्तर दिशा में पांच वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं। यथा- माल्यवान्, चित्रकूट, पद्मकूट, नलिनकूट और एक शैल । जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के सामने सीता महानदी के दक्षिण दिशा में पांच वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं। यथा त्रिकूट, वैश्रमण कूट, अञ्जन, मातंञ्जन और सोमनस । जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के पश्चिम में सीतोंदा महानदी के दक्षिण में पांच वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं। यथा विद्युत्प्रभ, अंकावती, पद्मावती, आशीविष और सुखावह । जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के पश्चिम में सीतोदा महानदी के उत्तर दिशा में पांच वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं । यथा - चन्द्रपर्वत, सूर्यपर्वत, नाग पर्वत, देवपर्वत और गन्ध मादन पर्वत । जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत के दक्षिण दिशा में देवकुरु में पांच महाद्रह कहे गये हैं। यथा नीलवान् द्रह, उत्तरकुरु द्रह, चन्द्र द्रह, ऐरावण द्रह, माल्यवान् द्रह । ये सभी वक्षस्कार पर्वत सीता, सीतोदा महानदी तथा मेरु पर्वत की तरफ पांच सौ योजन ऊंचे हैं और पांच सौ कोस जमीन में ऊंडे हैं । धातकी खण्ड द्वीप के पूर्वार्द्ध में मेरु पर्वत के पूर्व दिशा में सीता महानदी के उत्तर दिशा में पांच वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं। यथा माल्यवान्, चित्रकूट, पद्मकूट, नलिनकूट और एकशैल। इस प्रकार जैसा जम्बूद्वीप में वक्षस्कार आदि पर्वतों का वर्णन किया गया है। वैसा ही पुष्करवर द्वीप के पश्चिमार्द्ध तक वक्षस्कार पर्वत द्रह और पर्वतों की ऊंचाई आदि का वर्णन कर देना चाहिए। समयक्षेत्र यानी अढाई द्वीप में पांच भरत, पांच ऐरवत आदि का वर्णन जैसा चौथे ठाणे के दूसरे उद्देशक में किया गया है। वैसा पांच मेरु पर्वत, पांच मेरु पर्वतों की चूलिकाएं तक सारा वर्णन यहाँ भी कह देना चाहिए किन्तु इतनी विशेषता है कि यहाँ इषुकार पर्वतों का कथन नहीं करना चाहिए। कोशल देश में उत्पन्न तीर्थङ्कर भगवान् ऋषभदेव स्वामी पांच सौ धनुष ऊंचे थे। चारों दिशाओं के राजाओं को वश में करने वाले चक्रवर्ती भरत महाराजा पांच सौ धनुष ऊंचे थे । इसी प्रकार बाहुबली अनगार और ब्राह्मी, सुन्दरी आर्याएं भी पांच सौ धनुष की ऊंची थी।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में २० वक्षस्कार पर्वतों का नामोल्लेख किया गया है। माल्यवंत नाम के गजदंत पर्वत की प्रदक्षिणा करने से चार सूत्र में वर्णित २० वक्षस्कार पर्वत समझने चाहिये। यहां देवकुरु क्षेत्र में निषध नाम के वर्षधर पर्वत से उत्तर दिशा में ८३४ योजन तथा एक योजन के सात भाग में से चार भाग ८३४ उल्लंघन कर सीतोदा महानदी के पूर्व और पश्चिम किनारे पर विचित्रकूट और
६८
:
Jain Education International
-
-
For Personal & Private Use Only
-
-
www.jalnelibrary.org