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________________ स्थान ५ उद्देशक २ आरोपणा के पांच भेद - १. प्रस्थापिता २. स्थापिता ३. कृत्स्ना४. अकृत्स्ना ५. हाड़हड़ा। १. प्रस्थापिता - आरोपिता प्रायश्चित्त का जो पालन किया जाता है वह प्रस्थापिता आरोपणा है। २. स्थापिता - जो प्रायश्चित्त आरोपणा से दिया गया है। उस का वैयावृत्यादि कारणों से उसी समय पालन न कर आगे के लिये स्थापित करना स्थापिता आरोपणा है। ___३. कृत्स्ना - दोषों का जो प्रायश्चित्त छह महीने उपरान्त न होने से पूर्ण सेवन कर लिया जाता है और जिस प्रायश्चित्त में कमी नहीं की जाती। वह कृत्स्ना आरोपणा है। ४. अकृत्स्ना - अपराध बाहुल्य से छह मास से अधिक आरोपणा प्रायश्चित्त आने पर ऊपर का जितना भी प्रायश्चित्त है। वह जिसमें कम कर दिया जाता है। वह अकृत्स्ना आरोपणा है। . हाहड़ा - लघु अथवा गुरु एक, दो, तीन आदि मास का जो भी प्रायश्चित्त आया हो, वह तत्काल.ही जिसमें सेवन किया जाता है वह हाड़हड़ा आरोपणा है। वक्षस्कार पर्वत जंबूहीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरच्छिमेणं सीयाए महाणईए उत्तरेणं पंच वक्खार पव्वया पण्णत्ता तंजहा - मालवंते, चित्तकडे, पम्हकूडे णलिणकूडे, एगसेले । जंबूमंदरस्स पुरओ सीयाए महाणईए दाहिणेणं पंच वक्खारपव्वया पण्णत्ता तंजहा - तिकूड़ें, वेसमणकूडे, अंजणे, मायंजणे सोमणसे । जंबूमंदरस्स पच्चत्थिमेणं सीओयाए महाणईए दाहिणेणं पंच वक्खार पव्वया पण्णत्ता तंजहा - विजुप्पंभे, अंकावई, पम्हावई, आसीविसे, सुहावहे । जंबूमंदरस्स पच्चत्थिमेणं सीओयाए महाणईए उत्तरेणं पंच वक्खार पव्वया पण्णत्ता तंजहा - चंदपव्वए, सूरपव्वए, णागपव्वए, देवपव्वए, गंधमायणे । जंबू मंदरस्स दाहिणेणं देवकुराए कुराए पंच महदहा पण्णत्ता तंजहा - पीलवंतदहे, उत्तकुरु दहे, चंददहे, एरावणदहे, मालवंतदहे । सव्वे वि णं वक्खार पव्वया सीयासीओयाओ महाणईओ मंदरं वा पव्वयं तेणं पंचजोयणसयाइं उ उच्चत्तेणं पंचगाउथसयाइं उव्वेहेणं । धायइसंडे दीवे पुरच्छिमद्धेणं मंदरस्स पव्वयस्स पुरच्छिमेणं सीयाए महाणईए उत्तरेणं पंच वक्खार पव्वया पण्णत्ता तंजहा - मालवंते एवं जहा जंबूहीवे तहा जाव पुक्खरवरदीवपच्चत्थिमद्धे वक्खारा दहा य उच्चत्तं भाणियव्वं । समयक्खेत्ते णं पंच भरहाई पंच एरवयाइं एवं जहा चउट्ठाणे बिईयउद्देसे तहा एत्थ वि भाणियव्वं जाव पंच. मंदरा, पंच मंदर चूलियाओ, णवरं उसुयारा णत्थि । उसभे णं अरहा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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