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स्थान ५ उद्देशक २
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अनुद्घातिक, अंतःपुर में प्रवेश के कारण पंच अणुग्धाइया पण्णत्ता तंजहा - हत्थकम्मं करेमाणे, मेहुणं पडिसेवेमाणे, राइभोयणं भुंजेमाणे, सागारियपिंडं भुंजेमाणे, रायपिंडं भुंजेमाणे । पंचहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे रायंतेउरमणुपविसमाणे णाइक्कमइ तंजहा - णगरं सिया सव्वओ समंता गुत्ते गुत्तदुवारे, बहवे समण माहणा णो संचाएंति भत्ताए वा पाणाए वा णिक्खमित्तए वा पविसित्तए वा तेसिं विण्णवणट्ठयाए रायंतेउरमणुपविसिज्जा, पाडिहारियं वा पीढफलगसेग्जा संथारगं पच्चप्पिणमाणे रायतेउरमणुपविसिज्जा, हयस्स वा गयस्स वा दुगुस्स आगच्छमाणस्स भीए रायंतेउरमणुपविसिज्जा, परो वा णं सहसा वा बलसा वा बाहाए गहाए सयंतेउरमणुपविसेज्जा, बहिया वा णं आरामगयं वा उग्जाणगयं वा रायंतेउरजणो सव्वओ समंता संपरिक्खिवित्ता णं णिवेसिज्जा इच्चेएहिं पंचहि ठाणेहिं समणे णिग्गंथे जाव णाइक्कमइ ॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - अणुग्याइया - अनुद्घातिक, हत्थकम्मं - हस्तकर्म, सागारियपिडं - शय्यातर पिण्ड को, रायपिंडं - राज पिण्ड को, रायंतेउरमणुपविसमाणे - राजा के अन्तःपुर में प्रवेश करता हुआ, गुत्ते - कोट से घिरा हुआ, गुत्तदुवारे - दरवाजे बंद किये हुए, विण्णवणट्ठयाए - दशा बतलाने के लिए, पच्चप्पिणमाणे- वापिस देने के लिए, बलसा - हठात्।
भावार्थ - पांच अनुद्घातिक कहे गये हैं यथा - हस्तकर्म करने वाला, मैथुन सेवन करने वाला, रात्रि भोजन करने वाला, शय्यातर पिण्ड को भोगने वाला और राजपिण्ड भोगने वाला । ___पांच कारणों से राजा के अन्तःपुर में प्रवेश करता हुआ श्रमण निर्ग्रन्थ भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता है यथा- चारों तरफ से नगर कोट से घिरा हुआ हो और उसके दरवाजे बन्द किये हुए हो, उस समय में बहुत से श्रमण माहण यानी मूलगुण उत्तरगुण रूप चारित्र का पालन करने वाले संयती साधु अथवा श्रमण यानी बौद्ध भिक्षु और माहन यानी ब्राह्मण आहार पानी के लिए नगर से बाहर जाने में और वापिस नगर में प्रवेश करने में समर्थ न हों तो उन श्रमण माहनों की दशा को बतलाने के लिए साधु राजा के अन्तःपुर में प्रवेश करे यानी यदि उस समय राजा अन्तःपुर में बैठा हो तो साधु वहाँ भी जा सकता है अथवा राजकाज का काम रानी के हाथ में हो तो उपरोक्त प्रयोजन के लिए साधु रानी के पास अन्तःपुर में जा सकता है । पडिहारी रूप से लाये हुए पीठ, फलग यानी पाट पाटला, शय्या संस्तारक आदि को वापिस देने के लिए साधु राजा के अन्तःपुर में प्रवेश कर सकता है । सामने आते हुए दुष्ट घोड़े या हाथी के डर से साधु राजा के अन्तःपुर में प्रवेश कर सकता है । कोई दूसरा पुरुष अकस्मात् बाहु यानी भुजा पकड़ कर हठात् यानी जबर्दस्ती से साधु को राजा के अन्तःपुर में प्रवेश करा
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