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________________ श्री स्थानांग सूत्र १. राज विरोधी आदि से उपकरणों के चोरे जाने का भय हो। २. दुर्भिक्ष होने से भिक्षा नहीं मिलती हो। ३. कोई विरोधी गंगा आदि महानदियों में फेंक देवे। ४. गंगा आदि महानदियाँ बाढ़ आने पर उन्मार्ग गामी हो जाये, जिससे साधु साध्वी बह जाय। ५. जीवन और चारित्र के हरण करने वाले म्लेच्छ, अनार्य आदि से पराभव हो। चौमासे के प्रारम्भिक पचास दिनों में विहार करने के पाँच कारण पांच कारणों से साधु साध्वियों को प्रथम प्रावृट् अर्थात् चौमासे के पहले पचास दिनों में अपवाद रूप से विहार करना कल्पता है। १. राज-विरोधी आदि से उपकरणों के चोरे जाने का भय हो। २. दुर्भिक्ष होने से भिक्षा नहीं मिलती हो। ३. कोई ग्राम से निकाल देवे। ४. पानी की बाढ़ आ जाय। ५. जीवन और चारित्र का नाश करने वाले अनार्य दुष्ट पुरुषों से पराभव हो। वर्षावास अर्थात् चौमासे के पिछले ७० दिनों में विहार करने के पाँच कारण वर्षावास अर्थात् चौमासे के पिछले सत्तर दिनों में नियम पूर्वक रहते हुए साधु, साध्वियों को ग्रामानुग्राम विहार करना नहीं कल्पता है। पर अपवाद रूप में पांच कारणों से चौमासे के पिछले ७० दिनों में साधु, साध्वी विहार कर सकते हैं। १. ज्ञानार्थी होने से साधु, साध्वी विहार कर सकते हैं। जैसे कोई अपूर्व शास्त्रज्ञान किसी आचार्यादि के पास हो और वह संथारा करना चाहता हो। यदि वह शास्त्र ज्ञान उक्त आचार्यादि से ग्रहण न किया गया तो उसका विच्छेद हो जायगा। यह सोच कर उसे ग्रहण करने के लिये साधु साध्वी उक्त काल में भी ग्रामानुग्राम विहार कर सकते हैं। २. दर्शनार्थी होने से साधु साध्वी विहार कर सकते हैं। जैसे कोई दर्शन की प्रभावना करने वाले शास्त्र ज्ञान की इच्छा से विहार करे। ३. चारित्रार्थी होने से साधु साध्वी विहार कर सकते हैं। जैसे कोई क्षेत्र अनेषणा, स्त्री आदि दोषों से दूषित हो तो चारित्र की रक्षा के लिये साधु साध्वी विहार कर सकते हैं। ४. आचार्य उपाध्याय काल कर जाय तो गच्छ में अन्य आचार्यादि के न होने पर दूसरे गच्छ में जाने के लिये साधु साध्वी विहार कर सकते हैं। ५. वर्षा क्षेत्र में बाहर रहे हुए आचार्य, उपाध्यायादि की वैयावृत्य के लिये आचार्य महाराज भेजे तो साधु विहार कर सकते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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