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________________ ३६ श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 पद्मप्रभ के पंच कल्याणक पउमप्पहे णं अरहा पंच चित्ते हुत्था तंजहा - चित्ताहिँ चुए, चइत्ता गब्भं वक्कंते, चित्ताहिं जाए, चित्ताहि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, चित्ताहिं अणंते अणुत्तरे णिव्वाघाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाण. सणे समुप्पण्णे, चित्ताहिं परिणिव्वुए । पुष्फदंते णं अरहा मूले हुत्था तंजहा - मूलेणं चुए चइत्ता गब्भं वक्कंते एवं जाव मूलेणं परिणिव्वुए । एवं चेव एएणं अभिलावेणं इमाओ गाहाओ अणुगंतव्चाओ पउमप्पहस्स चित्ता, मूले पुण होइ पुष्पदंतस्स । पुव्वाइं आसाढा सीयलस्सुत्तर विमलस्स भहवया ॥१॥ रेवइया अणंत जिणो, पूसो धम्मस्स, संतिणों भरणी । कुंथुस्स कत्तियाओ, अरस्स तह रेवईओ य ॥ २॥ मुणिसुव्ययस्स सवणो अस्सिणी णमिणो, य णेमिणो चित्ता । पासस्स विसाहाओ, पंच य हत्थुत्तरो वीरो ॥३॥ _. . समणे भगवं महावीरे पंच हत्युत्तरे हुत्था तंजहा - हत्युत्तराहिं चुए चइता गर्भ वक्कते, हत्युत्तराहिं गभाओ गभं साहरिए, हत्युत्तराहिं जाए, हत्युत्तराहि मुंडे भवित्ता जाव पव्वइए, हत्युत्तराहिं अणंते अणुत्तरे जाव केवलवरणाणदंसणे समुप्पण्णे।१४। ॥इइ पंचमट्ठाणस्स पढमो उद्देसओ समत्तो॥ कठिन शब्दार्थ - चुए - च्यवन हुआ था, यहत्ता - चव कर, गम्भ वक्ते - गर्भ में आये, जाएजन्म हुआ, मुंडे - मुण्डित, भविता - होकर, अगाराओ अणगारियं पव्वइए - गृहस्थावास छोड़ कर प्रव्रण्या अंगीकार की, अणते - अनन्त, अणुत्तरे- अनुत्तर-उत्कृष्ट, णिव्याघाए - निर्व्याघात, णिरावरणेनिरावरण-आवरण रहित, कसिणे - कृत्स्न, पडिपुण्णे - प्रतिपूर्ण, केवलवरणाणदंसणे - प्रधान केवलज्ञान और केवल दर्शन, समुप्पणे - उत्पन्न हुए, परिणिव्वुए - परिनिवृत्त-मोक्ष पधारे। . भावार्थ - छठे तीर्थकर भगवान् पद्मप्रभ स्वामी के पांच कल्याणक चित्रा नक्षत्र में हुए थे यथाचित्रा नक्षत्र में नववें ग्रैवेयक से उनका च्यवन हुआ था वहां से चव कर माघ कृष्णा छठ को कोशाम्बी नगरी के श्रीधर राजा की सुषमा महारानी के गर्भ में आये । कार्तिक कृष्णा बारस को चित्रा नक्षत्र में जन्म हुआ । कार्तिक शुक्ल तेरस को चित्रा नक्षत्र में मुण्डित होकर गृहस्थावास छोड़ कर प्रव्रज्या अङ्गीकार की । चैत्र शुक्ला पूर्णिमा को चित्रा नक्षत्र में अनन्त, उत्कृष्ट, निर्व्याघात यानी अप्रतिपाती, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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