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श्री स्थानांग सूत्र
५. यह पुरुष आक्रोश आदि परीषह उपसर्ग देता हुआ पाप कर्म बांध रहा है। परन्तु यदि मैं समभाव से इससे दिये गए परीषह उपसर्ग सह लूंगा तो मुझे एकान्त निर्जरा होगी।
यहाँ परीषह उपसर्ग से प्रायः आक्रोश और वध रूप दो परीषह तथा मनुष्य सम्बन्धी प्रद्वेषादि जन्य उपसर्ग से तात्पर्य है।
केवली के परीषह सहन करने के पाँच स्थान
पांच स्थान से केवली उदय में आये हुए आक्रोश, उपहास आदि उपरोक्त परीषह, उपसर्ग सम्यक् प्रकार से सहन करते हैं।
१. पुत्र शोक आदि दुःख से इस पुरुष का चित्त खिन्न एवं विक्षिप्त है। इसलिये यह पुरुष गाली देता है। यावत् उपकरणों की चोरी करता है। - २. पुत्र-जन्म आदि हर्ष से यह पुरुष उन्मत्त हो रहा है। इसी से यह पुरुष गाली देता है, यावत् उपकरणों की चोरी करता है।
___३. यह पुरुष देवाधिष्ठित है। इसकी आत्मा पराधीन है। इसी से यह पुरुष मुझे गाली देता है, यावत् उपकरणों की चोरी करता है।
४-५. परीषह उपसर्ग को सम्यक् प्रकार वीरता पूर्वक, अदीनभाव से सहन करते हुए एवं विचलित न होते हुए मुझे देख कर दूसरे बहुत से छद्मस्थ श्रमण निर्ग्रन्थ उदय में आये हुए परीषह उपसर्ग को सम्यक् प्रकार सहेंगे, खमेंगे एवं परिषह उपसर्ग से धर्म से चलित नहीं होंगे। क्योंकि प्रायः सामान्य लोग महापुरुषों का अनुसरण किया करते हैं।
हेतु और अहेतु पंच हेऊ पण्णत्ता तंजहा - हे ण जाणइ, हेउं ण पासइ, हे ण बुझइ, हेडंण अभिगच्छइ, हेउं अण्णाणमरणं मरइ ।पंच हेऊ पण्णत्ता तंजहा - हेटणा ण जाणइ, हेउणा ण पासइ, हेउणा ण बुझाइ, हेउणा ण अभिगच्छइ, हेउणा अण्णाणमरणं मरइ। पंच हेऊ पण्णत्ता तंजहा - हेउं जाणइ, हेउं पासइ, हे बुज्झइ, हे अभिगच्छइ, हेउं छउमत्थ मरणं मरइ । पंच हेऊ पण्णत्ता तंजहा - हेउणा जाणइ जाव हेउणा छउमत्थ- मरणं मरइ । पंच अहेऊ पण्णत्ता तंजहा - अहेउं ण जाणइ जाव अहे छउमत्थमरणं मरइ । पंच अहेऊ पण्णत्ता तंजहा - अहेउणा ण जाणइ जाव अहेउणा छउमत्थमरणं मरइ । पंच अहेऊ पण्णत्ता तंजहा - अहेउं जाणइ जाव अहेडं केवलिमरणं मरइ । पंच अहेऊ पण्णत्ता तंजहा - अहेउणा ण जाणइ जाव अहेउणा केवलिमरणं मरइ।
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