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स्थान ५ उद्देशक १
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एकान्त रूप से निर्जरा होगी । इन पांच कारणों से छद्मस्थ पुरुष उदय में आये हुए परीषह उपसर्गों को सम्यक् प्रकार से सहन करता है यावत् अविचलित भाव से सहन करता है ।
पांच कारणों से केवली भगवान् उदय में आये हुए परीषह उपसर्गों को सम्यक् प्रकार से सहन करते हैं । यावत् अविचलित भाव से सहन करते हैं यथा - निश्चय ही यह पुरुष क्षिप्त चित्त वाला यानी पुत्रादि के वियोग के शोक से विक्षिप्त चित्त वाला है, इसीलिए यह पुरुष मुझे आक्रोश करता है यावत् मेरे धर्मोपकरणों को चुराता है । निश्चय ही यह पुरुष दृप्तचित्त वाला यानी पुत्र जन्मादि के हर्ष से उन्मत्त चित्त वाला है, इसीलिए यह पुरुष मुझे आक्रोश करता है यावत् मेरे धर्मोपकरणों को चुराता है। निश्चय ही यह पुरुष यक्षाविष्ट हैं, इसीलिए यह पुरुष मुझे आक्रोश करता है यावत् मेरे धर्मोपकरणों को चुराता है । मेरे इस भव में वेदने योग्य कर्म उदय में आये हैं इसीलिए यह पुरुष मुझे आक्रोश करता है यावत् मेरे धर्मोपकरणों को चुराता है । मेरे उदय में आये हुए कर्मों को सम्यक् प्रकार से सहन करते हुए क्षमा करते हुए अदीनभाव से सहन करते हुए मुझे देखकर दूसरे बहुत से छद्मस्थ श्रमण निर्ग्रन्थ उदय में आये हुए परीषह उपसर्गों को इसी तरह सम्यक् प्रकार से सहन करेंगे यावत् अविचलित भाव से सहन करेंगे । इन पांच कारणों से केवली भगवान् उदय में आये हुए परीषह उपसर्गों को सम्यक् प्रकार से सहन करते हैं यावत् अविचलित भाव से सहन करते हैं । ... विवेचन - छमस्थ के परीषह उपसर्ग संहने के पाँच स्थान - पाँच बोलों की भावना करता हुआ छद्मस्थ साधु उदय में आये हुए परीषह उपसर्गों को सम्यक् प्रकार से निर्भय हो कर अदीनता पूर्वक सहे, खमे और परीषह उपसर्गों से विचलित न होवे।
१. मिथ्यात्व मोहनीय आदि कर्मों के उदय से यह पुरुष शराब पिये हुए पुरुष की तरह उन्मत्त (पागल) सा बना हुआ है। इसी से यह पुरुष मुझे गाली देता है, मजाक करता है, भर्त्सना करता है, बांधता है, रोकता है, शरीर के अवयव हाथ, पैर आदि का छेदन करता है, मूर्छित करता है, मरणान्त दुःख देता है, मारता है, वस्त्र, पात्र, कम्बल, पाद प्रोन्छन आदि को छीनता है। मेरे से वस्त्रादि को जुदा करता है, वस्त्र फाड़ता है एवं पात्र फोड़ता है तथा उपकरणों की चोरी करता है।
२. यह पुरुष देवता से अधिष्ठित है, इस कारण से गाली देता है। यावत् उपकरणों की चोरी करता है।
३. यह पुरुष मिथ्यात्व आदि कर्म के वशीभूत है और मेरे भी इसी भव में भोगे जाने वाले वेदनीय कर्म उदय में है। इसी से यह पुरुष गाली देता है, यावत् उपकरणों की चोरी करता है। __४. यह पुरुष मूर्ख है। पाप का इसे भय नहीं है। इसीलिये यह गाली आदि परीषह दे रहा है। परन्तु यदि मैं इससे दिये गए परीषह उपसर्गों को सम्यक् प्रकार अदीन भाव से वीर की तरह सहन न करूं तो मुझे भी पाप के सिवाय और क्या प्राप्त होगा।
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