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स्थान १०
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इमीसे मं रयणप्पभाए पुढवीए वइरे कंडे दस जोयणसयाई बाहल्लेणं पण्णत्ते, एवं वेरुलिए लोहियक्खे मसारगल्ले हंसगब्भे पुलए सोगंधिए जोइरसे अंजणे अंजलपुलए रयए जायरुवे अंके फलिहे रिट्टे जहा रयणे तहा सोलसविहा भाणियव्वा ।
समुद्र द्रह आदि की गहराई सव्वे विणं दीवसमुद्दा दसजोयणसयाइं उव्वेहेणं पण्णत्ता । सव्वे वि ण महाहहा दस जोयणाई उव्वेहेणं पण्णत्ता सव्वे वि णं सलिलकूडा दस जोयणाई उव्वेहेणं पण्णत्ता।
सीया सीओया णं महाणईओ मुहमूले दस दस जोयणाई उव्वेहेणं पण्णत्ताओ। कत्तिया णक्खत्ते सव्व बाहिराओ मंडलाओ दसमे मंडले चारं चारइ । अणुराहा णक्खत्ते सव्वब्भंतराओ मंडलाओ दसमे मंडले चारं चरइ ।
ज्ञान वृद्धि के नक्षत्र दस णक्खत्ता णाणस्स विद्धिकरा पण्णत्ता तंजहा -
मिगसिरमद्धा पुस्सो, तिण्णि य पुव्वाइं मूलमस्सेसा । - हत्थो चित्ता य तहा, दस विद्धिकराई णाणस्स ॥ १॥ १४१॥ कठन शब्दार्थ - रयणेकंडे - रत्ल काण्ड, विद्धिकरा-बुडिकरा - वृद्धि करने वाले।
भावार्थ - इस रत्नप्रभा पृथ्वी का रत्नकाण्ड दस सौ अर्थात् एक हजार योजन का जाडा कहा गया है । इस रत्नप्रभा पृथ्वी का वप्रकाण्ड एक हजार योजन का जाड़ा कहा गया है । इसी प्रकार रत्नप्रभा पृथ्वी का वैडूर्य काण्ड, लोहिताक्ष काण्ड, मसारगल काण्ड, हंसगर्भ काण्ड, पुलक काण्ड, सौगन्धिकं काण्ड, ज्योतिरस काण्ड, अजजन काण्ड, अञ्जनपुलक काण्ड, रजत काण्ड, जातरूप काण्ड, अंक काण्ड, स्फटिक काण्ड, रिष्ट काण्ड ये सब सोलह ही काण्ड रत्न काण्ड के समान एक एक हजार योजन के जाड़े कहे गये हैं ।। .. सभी द्वीप और समुद्र एक एक हजार योजन के ऊंडे कहे गये हैं । सभी महाद्रह दस योजन ऊंडे कहे गये हैं । सभी सलिलकूट दस योजन ऊंडे कहे गये हैं । सीता और सीतोदा ये दोनों महानदियाँ मुखमूल में अर्थात् प्रारम्भ में दस दस योजन की ऊंडी कही गई हैं । कृतिका नक्षत्र सब बाहरी मण्डलों से दसवें मण्डल में घूमता है । अनुराधा नक्षत्र सब आभ्यन्तर मण्डलों से दसवें मण्डल में घूमता है । .. दस नक्षत्र ज्ञान की वृद्धि करने वाले कहे गये हैं अर्थात् इन नक्षत्रों का चन्द्रमा के साथ योग होने पर विदया आरम्भ करना तथा विद्या सम्बन्धी कोई काम शुरू करने से ज्ञान की वृद्धि होती है । वे नक्षत्र ये हैं - मृगशीर्ष; आर्द्रा, पुष्य, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वभाद्रपदा, पूर्वाषाढा, मूला, अश्लेषा, हस्त और चित्रा ये दस नक्षत्र ज्ञान की वृद्धि करने वाले हैं ।
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