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श्री स्थानांग सूत्र
श्रमण माहन की अत्यन्त आशातना करे, तब आशातना करने से कुपित बना हुआ वह मुनि उसके ऊपर तेजोलेश्या फेंकता है, जिस से उसके शरीर में फोड़े हो जाते हैं, फिर वे फोड़े फूटते हैं, उन फोड़ों के फूटने पर वह मुनिं उस अनार्य पुरुष को तेजसहित भस्म कर देता है । ५. कोई अनार्य पुरुष तथारूप के श्रमण माहन की अत्यन्त आशातना करे, तब आशातना करने से कुपित बना हुआ उस मुनि का सेवक .
देव उस पर तेजोलेश्या फेंकता है, जिससे उसके शरीर में फोड़े हो जाते हैं, फिर वे फोड़े फूटते हैं, उन • फोड़ों के फूटने पर तेजसहित उस अनार्य पुरुष को भस्म कर देता है । ६. कोई अनार्य पुरुष तथारूप
के श्रमण माहन की अत्यन्त आशातना करे, तब आशातना करने से कुपित बना हुआ वह मुनि और उसका सेवक देव दोनों प्रतिज्ञा करके अर्थात उसे लक्ष्य करके उस पर तेजोलेश्या फेंकते हैं। जिससे. ; उसके शरीर में फोड़े हो जाते हैं फिर वे फोड़े फूटते हैं, उन फोड़ों के फूटने पर तेजोलेश्या सहित उस अनार्य पुरुष को भस्म कर देते हैं । ७. कोई अनार्य पुरुष तथारूप के श्रमण माहन की अत्यन्त
शातना करे, तब आशातना करने से कुपित बना हुआ वह श्रमण उसके ऊपर तेजोलेश्या फेंकता है, . जिससे उसके शरीर में फोड़े हो जाते हैं, फिर वे फोड़े फूटते हैं, उनके फूटने से छोटी छोटी फुन्सियाँ । हो जाती हैं, फिर वे फुन्सियाँ फूटती हैं, उन फुन्सियों के फूटने पर तेज सहित उस अनार्य पुरुष को भस्म कर देता है । इस प्रकार तीन आलापक कह देने चाहिए, जैसे कि 'कुपित बना हुआ वह मुनि : उसको भस्म कर देता है' यह सातवा आलापक है । ८. 'कुपित बना हुआ उस मुनि की सेवा करने वाला देव उसको भस्म कर देता हैं' यह आठवाँ आलापक है । ९. 'कुपित बना हुआ वह मुनि और उसका सेवक देव दोनों उसको भस्म कर देते हैं। यह नववा आलापक है । १०. कोई अनार्य पुरुष " तथारूप के श्रमण माहन की अत्यन्त आशातना करे और आशातना करता हुआ वह अनार्य पुरुष उस
मुनि पर तेजोलेश्या फेंके किन्तु वह तेजोलेश्या उस मुनि पर थोड़ा या बहुत कुछ भी असर न कर सके किन्तु उसके पास में उछल कूद करे करके उस मुनि की प्रदक्षिणा करे और उछल कूद करके ऊपर आकाश में उछले उछल कर उस मुनि के तेज प्रताप से प्रतिहत होकर वहाँ से वापिस लौटती है लौट कर उसी अनार्य पुरुष के शरीर को दग्ध करती हुई तेजो लेश्या सहित उसको भस्म कर देती है जैसे कि मंखलिपुत्र गोशालक द्वारा श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पर फेंकी हुई तेजोलेश्या ने वापिस लौट कर गोशालक के शरीर को ही दग्ध कर दिया ।
विवेचन - भगवती सूत्र के पन्द्रहवें शतक में मंखलिपुत्र गोशालक का वर्णन है। गोशालक ने अपनी तेजोलेश्या से सुनक्षित्र मुनि को भस्म कर दिया। फिर सर्वानुभति मुनि पर तेजोलेश्या फेंकी जिससे वह अर्ध दग्ध हो गया। फिर उसने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पर तेजोलेश्या फेंकी परन्तु वह भगवान् का कुछ भी बिगाड़ नहीं कर सकी प्रत्युत वहाँ से वापिस लौट कर गोशालक के शरीर को ही दग्ध कर दिया जिससे वह सात रात्रि के बाद काल धर्म को प्राप्त हो गया।
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