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________________ स्थान १० ३६३ कुज्जा । केइ तहारूवं समणं वा माहणं वा अच्चासाएग्जा, से य अच्चासाइए समाणे परिकुविए तस्स तेयं णिसिरेग्जा, तत्थ फोडा सम्मुच्छंति.ते फोडा भिजति, तत्थ पुला सम्मुच्छंति, ते पुला भिजंति, ते पुला भिण्णा समाणा तमेव सह तेयसा भासं कुज्जा। एए तिण्णि आलावगा भाणियव्वा । केइ तहानवं समणं वा माहणं वा अच्चासाएज्जा, से य अच्वासाइए समाणे तेयं णिसिरेग्जा, से य तत्थ णो कम्मइ णो पकम्मइ, अंचियं अंधियं करेइ करित्ता आयाहिण पयाहिणं करेइ करित्ता उई वेहासं उप्पयइ उप्पइत्ता से णं तओ पडिहए पडिणियत्तइ पडिणियतित्ता तमेव सरीरगमणुदहमाणे अणुदहमाणे सह तेयसा भासं कुज्जा जहा वा गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवतेए॥१३९॥ .... कठिन शब्दार्थ - विजाहरसेढीओ - विद्याधरों की श्रेणियां, आभिओगसेढीओ - आभियोगिक देवों की श्रेणियाँ, सह तेयसा - तेज सहित, अच्चासाएज्जा - आशातना करे, परिकुविए - कुपित बना हुआ, पडिण्णा - प्रतिज्ञा, पुला - फुन्सियाँ, उप्पयइ - उछलता है, पडिहए - प्रतिहत, अणुदहमाणेदग्ध करती हुई। . भावार्थ - बादर तृण वनस्पतिकाय दस प्रकार की कही गई है यथा - मूल, कन्द, स्कन्ध, छाल, शाखा, अङ्कर, पत्र, पुष्प, फल और बीज । - विद्याधरों की सब श्रेणियाँ दस दस योजन चौड़ी कही गई हैं । विदयाधरों की श्रेणियों से दस योजन ऊपर जाने पर आभियोगिक देवों की श्रेणियाँ आती हैं वे आभियोगिक देवों की सब श्रेणियाँ दस दस योजन चौड़ी कही गई है। ग्रैवेयक देवों के विमान दस सौ योजन ऊंचे कहे गये हैं। . कुपित. हुआ श्रमण दस प्रकार से किसी अनार्य पुरुष को उसके तेज सहित भस्म कर देता है वे . दस प्रकार ये हैं - १. कोई अनार्य पुरुष तथारूप वाले अर्थात् तेजो लब्धि वाले श्रमण माहण की । अत्यन्त आशातना करे, तब आशातना से कुपित बना हुआ वह श्रमण उस आशातना करने वाले पर तेजो . लेश्या फेंकता है और उसे परितापित करता है उसे परितापित करके तेजसहित उसे भस्म कर देता है । २. कोई अनार्य पुरुष तथारूप के श्रमण माहन की आशातना करे, तब आशातना करने से उस मुनि की सेवा करने वाला देव कुपित होकर उसके ऊपर तेजो लेश्या फेंकता है और उसे परितापित करता है। परितापित करके तेजसहित उसे भस्म कर देता है । ३. कोई अनार्य पुरुष तथारूप के श्रमण माहन की आशातना करे, तब आशातना करने से कुपित बना हुआ वह मुनि और उस मुनि का सेवक देव दोनों प्रतिज्ञा करके यानी उसे लक्ष्य बना कर उसके ऊपर तेजो लेश्या फेंकते हैं और उसको परितापित करते हैं परितापित करके तेजसहित उस अनार्य पुरुष को भस्म कर देते हैं । ४. कोई अनार्य पुरुष तथारूप के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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