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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
१०. लोक संज्ञा - सामान्यरूप से जानी हुई बात को विशेष रूप से जानना लोकसंज्ञा है। अर्थात् दर्शनोपयोग को ओघ संज्ञा तथा ज्ञानोपयोग को लोकसंज्ञा कहते हैं। किसी के मत से ज्ञानोपयोग ओघ संज्ञा है और दर्शनोपयोग लोकसंज्ञा। सामान्य प्रवृत्ति को ओघसंज्ञा कहते हैं तथा लोक दृष्टि को . लोकसंज्ञा कहते हैं, यह भी एक मत है।
(भगवती शतक ७ उद्देशा ८) नारकी जीवों के वेदना दस- १. शीत - नरक में अत्यन्त शीत (ठण्ड) होती है।
२. उष्ण (गरमी) ३. क्षुधा (भूख) ४. पिपासा (प्यास) ५. कण्डू (खुजली).६. परतन्त्रता (परवशता) ७. भय (डर) ८. शोक (दीनता) ९. जरा (बुढ़ापा) १०. व्याधि (रोग)। उपरोक्त दस वेदनाएं नरकों के अन्दर अत्यन्त अर्थात् उत्कृष्ट रूप से होती हैं।
छद्मस्थ और केवली का विषय दस ठाणाइं छउमत्थे णं सवभावेणं ण जाणइ ण पासइ तंजहा - धम्मत्थिकायं जाव वायं अयं जिणे भविस्सइ वा ण वा भविस्सइ, अयं सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सइ वा ण वा करिस्सइ । एयाणि चेव उप्पण्ण णाणदंसण धरे अरहा सव्वभावेणं जाणइ पासइ जाव अयं सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सइ वा ण वा करिस्सइ। ।
दस अध्ययनों वाले आगम दस दसाओ पण्णत्ताओ तंजहा - कम्मविराग दसाओ उवासगदसाओ अंतगडदसाओ अणुत्तरोववाइय दसाओ, आयारदसाओ, पण्हावागरणदसाओ, बंधदसाओ, दोगिद्धिदसाओ, दीहदसाओ, संखेवियदसाओ । कम्मविवागदसाणं दस अग्झयणा पण्णत्ता तंजहा - . मियापुत्ते य गोत्तासे, अंडे सगडे इ यावरे ।
माहणे णंदिसेणे य, सोरियत्ति उदुंबरे ॥१॥
सहसुद्दाहे आमलए कुमारे लेच्छइ । उवासगदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता तंजहा -
आणंदे कामदेवे. य, गाहावई चूलणीपिया ॥ २॥ सुरादेवे चुल्लसयए, गाहावई कुंडकोलिए । सहालपुत्ते महासयए णंदिणीपिया सालइयापिया ॥ ३॥
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