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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 महावीर ने नाम निर्देश पूर्वक स्वरूप और फल बताया है। उन्होंने उनकी प्रशंसा की है और आचरण करने की अनुमति दी है। वे बोल निम्न प्रकार हैं -
१. शान्ति २. मुक्ति ३. आर्जव ४. मार्दव ५. लाघव।
१. क्षान्ति - शक्त अथवा अशक्त पुरुष के कठोर भाषणादि को सहन कर लेना तथा क्रोध का सर्वथा त्याग करना क्षान्ति है।
.. २. मुक्ति - सभी वस्तुओं में तृष्णा का त्याग करना, धर्मोपकरण एवं शरीर में भी ममत्व भाव न रखना, सब प्रकार के लोभ को छोड़ना मुक्ति है।
३. आर्जव - मन, वचन, काया की सरलता रखना और माया का निग्रह करना आर्जव है। ४. मार्दव - विनम्र वृत्ति रखना, अभिमान न करना मार्दव है। ५.लाघव-द्रव्य से अल्प उपकरण रखना एवं भाव से तीन गारव का त्याग करना लाघव है। भगवान् से उपदिष्ट एवं अनुमत पाँच स्थान - १. सत्य २. संयम ३. तप ४. त्याग ५. ब्रह्मचर्य।
१. सत्य - सावध अर्थात् असत्य, अप्रिय, अहित वचन का त्याग करना, यथार्थ भाषण करना, मन वचन काया की सरलता रखना सत्य है।
२. संयम - सर्व सावध व्यापार से निवृत्त होना संयम है। पांच आस्रव से निवृत्ति, पांच इन्द्रिय का निग्रह, चार कषाय पर विजय और तीन दण्ड से विरति। इस प्रकार सतरह भेद वाले संयम का पालन करना संयम है।
३. तप- जिस अनुष्ठान से शरीर के रस, रक्त आदि सात धातु और आठ कर्म तप कर नष्ट हो जाय वह तप है। यह तप बाह्य और आभ्यन्तर के भेद से दो प्रकार का है। दोनों के छह छह भेद हैं।
४. त्याग - कर्मों के ग्रहण कराने वाले बाह्य कारण माता, पिता, धन, धान्यादि तथा आभ्यन्तर कारण राग, द्वेष, कषाय आदि सर्व सम्बन्धों का त्याग करना, त्याग है। साधुओं को वस्त्रादि का दान करना त्याग है। शक्ति होते हुए उद्यत विहारी होना, लाभ होने पर संभोगी साधुओं को आहारादि देना अथवा अशक्त होने पर यथाशक्ति उन्हें गृहस्थों के घर बताना और इसी प्रकार उद्यत विहारी, असंभोगी साधुओं को गोचरी में साथ रहकर श्रावकों के घर दिखाना यह भी त्याग कहलाता है।
नोट - हेम कोष में दान का अपर नाम त्याग है। . ..
५. ब्रह्मचर्यवास - मैथुन का त्याग कर शास्त्र में बताई हुई ब्रह्मचर्य की नव गुप्ति (वाड़) पूर्वक शुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन करना ब्रह्मचर्य वास है। ___ भगवान् से उपदिष्ट एवं अनुमत पाँच स्थान - १. उत्क्षिप्त चरक २. निक्षिप्त चरक ३. अन्त चरक ४. प्रान्त चरक ५. रूक्ष चरक।
१. उत्क्षिप्त चरक - गृहस्थ के अपने प्रयोजन से पकाने के बर्तन से बाहर निकाले हुए आहार की गवेषणा करने वाला साधु उत्क्षिप्त चरक है।
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