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________________ २९८ श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 उक्कावाए - उल्कापात, दिसिदाघे - दिग्दाह, गजिए - गर्जित, विजुए - विदयुत, णिग्याए - निर्घात, जूयए - यूपक, जक्खालित्ते - यक्षादीप्त, धूमिया - धूमिका, महिया - महिका, रयउग्याए - रज उद्घात, असुइसामंते - अशुचि सामन्त, सुसाणसामंते - श्मशान सामन्त, चंदोवराए - चन्द्रोपरागचन्द्र ग्रहण, सूरोवराए - सूर्योपराग (सूर्य ग्रहण), पडणे - पतन-मरण, रायवुग्गहे - राजविग्रह । ___ भावार्थ - वाचना, पृच्छना, परिवर्तना, धर्मकथा और अनुप्रेक्षा रूप पांच प्रकार का स्वाध्याय है । जिस काल में अध्ययन रूप स्वाध्याय नहीं किया जा सकता हो उसे अस्वाध्याय कहते हैं । उनमें से आन्तरिक्ष - आकाश सम्बन्धी अस्वाध्याय दस प्रकार का कहा गया है यथा - १. उल्कापात - पूंछ वाले तारे आदि का टूटना । २. दिग्दाह - किसी दिशा में नगर जले जैसी लपटें उठने का दृश्य दिखाई दें। ३. गर्जित - आकाश में गर्जना का होना । ४. विदयुत् - बिजली चमकना । ५. निर्घात - कड़कना। ६. यूपक - सन्ध्या की प्रभा और चन्द्रमा की प्रभा का जिस काल में सम्मिश्रण होता है वह यूपक कहलाता है । चन्द्र की प्रभा से आच्छादित सन्ध्या मालूम नहीं पड़ती है । शुक्लपक्ष की . एकम, दूज और तीज को सन्ध्या का भान नहीं होता है । संध्या का यथावत् ज्ञान न होने के. कारण इन तीन दिनों के अंदर प्रादोषिक काल का ग्रहण नहीं किया जा सकता है। अतः इन तीन दिनों में सूत्रों का अस्वाध्याय होता है । ये तीन दिन अस्वाध्याय के हैं । ७. यक्षादीप्त - कभी कभी किसी दिशा में बिजली के समान जो प्रकाश होता है वह व्यन्तर देवकृत अग्नि दीपन यक्षादीप्त कहलाता है। ८. धूमिका - कोहरा या धुंवर जिससे अन्धेरा सा छा जाता है। ९. महिका - तुषार या बर्फ का गिरना। १०. रज उद्घात - स्वाभाविक परिणाम से धूल का गिरना रज उद्घात कहलाता है। अस्वाध्याय के समय को छोड़कर स्वाध्याय करना चाहिए क्योंकि अस्वाध्याय के समय में स्वाध्याय करने से कभी कभी व्यन्तर जाति आदि के देव कुछ उपद्रव कर सकते हैं। अतः अस्वाध्याय के समय में स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। ऊपर लिखे हुए अस्वाध्यायों में से उल्कापात, दिग्दाह, विदयुत्, यूपक और यक्षादीप्त इन पांच में एक पौरिसी तक अस्वाध्याय रहता है। गर्जित में दो पौरिसी तक। निर्घात में आठ प्रहर तक। धूमिका, महिका और रज उद्घात में जितने समय तक ये गिरते रहें तभी तक अस्वाध्याय काल रहता है। औदारिक शरीर सम्बन्धी अस्वाध्याय दस प्रकार का कहा गया है यथा - अस्थि - हड्डी, मांस, शोणित - खून, अशुचि सामन्त, श्मशान सामन्त, चन्द्रोपराग - चन्द्रग्रहण, सूर्योपराग - सूर्यग्रहण, पतन - मरण, राजविग्रह, उपाश्रय के समीप मृत औदारिक शरीर । . हड्डी, मांस और खून ये तीनों चीजें मनुष्य और तिर्यञ्च के औदारिक शरीर में पाई जाती हैं । .व्यवहार भाष्य में शुक्ल पक्ष की दूज, तीज और चौथ ये तीन तिथियाँ यूपक मानी गई है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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