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________________ स्थान १० उपयोग परिणाम के होने पर ज्ञान परिणाम होता है। अतः आगे ज्ञान परिणाम बतलाया जाता है। ७. ज्ञान परिणाम - मति श्रुत आदि पाँच प्रकार के ज्ञान रूप में जीव की परिणति होना ज्ञान परिणाम कहलाता है। यही ज्ञान मिथ्यादृष्टि को अज्ञान स्वरूप होता है। अतः मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान विभङ्ग ज्ञान ( अवधि अज्ञान) का भी इसी परिणाम में ग्रहण हो जाता है। २९७ 000 मतिज्ञान आदि के होने पर सम्यक्त्व रूप दर्शन परिणाम होता है। अतः आगे दर्शन ( सम्यक्त्व) परिणामं का कथन है। ८. दर्शन परिणाम - सम्यक्त्व, मिथ्यात्व और मिश्र (सम्यक् मिथ्यात्व) के भेद से दर्शन के तीन भेद हैं। इन में से किसी एक में जीव की परिणति होना दर्शन परिणाम है। दर्शन के पश्चात् चारित्र होता है। अतः आगे चारित्र परिणाम का कथन किया जाता है - ९. चारित्र परिणाम - चारित्र के पाँच भेद है। सामायिक चारित्र, छेदोपस्थापनीय चारित्र, परिहारविशुद्धि चारित्र, सूक्ष्मसंपराय चारित्र, यथाख्यात चारित्र । इन पांचों चारित्रों में से जीव की किसी भी चारित्र में परिणति होना चारित्र परिणाम कहलाता है। Jain Education International १०. वेद परिणाम - स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद में से जीव को किसी एक वेद की प्राप्ति होना वेद परिणाम कहलाता है। अजीव अर्थात् जीव रहित वस्तुओं के परिवर्तन से होने वाली उनकी विविध अवस्थाओं को अजीव परिणाम कहते हैं। वे दस प्रकार के हैं। जिनका अर्थ भावार्थ में स्पष्ट कर दिया गया है। विशेष जानकारी के लिए प्रज्ञापना सूत्र का संरहवां परिणाम पद देखना चाहिये । अस्वाध्याय के भेद . दसविहे अंतलिक्खए असम्झाइए पण्णत्ते तंजहा - उक्कावाए, दिसिदाघे, गजिए, विज्जए, णिग्याए, जूयए, जक्खालित्ते, धूमिया, महिया, रयउग्घाए । दसविहे ओरालिए असझाइए पण्णत्ते तंजहा - अट्ठि, मंसं, सोणिए, असुइसामंते, सुसाणसामंते, चंदोवराए, सूरोवराए, पडणे, रायवुग्गहे, उवसयस्स अंतो ओरालिए सरीरगे । पंचेन्द्रिय जीवों का संयम असंयम पंचिंदियाणं जीवाणं असमारभमाणस्स दसविहे संजमे कज्जइ तंजहा सोयामयाओ सुक्खाओ अववरोवित्ता भवइ, सोयामएणं दुक्खेणं असंजोइत्ता भवइ, एवं जाव फासामएणं दुक्खेणं असंजोइत्ता भवइ, एवं असंजमो वि भाणियव्व ॥ ११८ ॥ कठिन शब्दार्थ - अंतलिक्खए- आन्तरिक्ष-आकाश सम्बन्धी, असझाइए - अस्वाध्याय, For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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