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दसवाँ स्थान
लोकस्थिति दसविहा लोगट्ठिई पण्णत्ता तंजहा - जण्णं जीवा उद्दाइत्ता उद्दाइत्ता तत्थेव तत्थेव भुज्जो भुज्जो पच्चायंति एवं एगा लोगट्टिई पण्णत्ता । जणं जीवा सया समियं पावे कम्मे कज्जइ एवंप्पेगा लोगट्टिई पण्णत्ता । जण्णं जीवा सया समियं मोहणिजे पावे कम्मे कज्जइ एवंप्पेगा लोगट्टिई पण्णत्ता । ण एवं भूयं वा, भव्वं वा, भविस्सइ वा, जं जीवा अजीवा भविस्संति, अजीवा वा जीवा भविस्संति, एवंप्पेगा लोगट्टिई पण्णत्ता। ण एवं भूयं वा, भव्वं वा, भविस्सइ वा, तसा पाणा वोच्छिजिस्संति थावरा पाणा वोच्छिजिस्संति तसा पाणा भविस्संति वा । एवंप्पेगा लोगट्ठिई पण्णत्ता ।ण एवं भूयं वा, भव्वं वा, भविस्सइ वा, जं लोए अलोए भविस्सइ, अलोए वा लोए भविस्सइ, एवंप्पेगा लोगट्ठिई पण्णत्ता । ण एवं भूयं वा, भव्वं वा, भविस्सइ वा, जं लोए अलोए पविस्सइ, अलोए वा लोए पविस्सइ एवंप्पेगा लोगट्टिई । जाव जाव लोए ताव ताव जीवा, जाव जाव जीवा ताव ताव लोए एवंप्पेगा लोगट्टिई । जाव जाव जीवाण य पोग्गलाण य गइपरियाए ताव ताव लोए, जाव जाव लोए ताव ताव जीवाण य पोग्गलाण य गइपरियाए एवंप्पेगा लोगट्टिई। सव्वेसु वि णं लोगंतेसु अबद्धपासपुट्ठा पोग्गला लुक्खत्ताए कज्जइ जेणं जीवा य पोग्गला य णो संचाएंति बहिया लोगंता गमणयाए एवंप्पेगा लोगट्टिई पण्णत्ता॥११४॥
कठिन शब्दार्थ - लोगट्ठिई - लोक स्थिति, उद्दाइत्ता - मर कर, अबद्धपासपुट्ठा - अबद्ध पार्श्व स्पृष्ट।
भावार्थ - लोक की स्थिति दस प्रकार से व्यवस्थित है । यथा - जीव बारम्बार मरकर इस लोक में पुनः पुनः जन्म धारण करते हैं, यह लोक की प्रथम स्थिति है । जीव अनादि काल से निरन्तर पाप कर्मों को बांधते रहते हैं, यह दूसरी लोक स्थिति है । जीव अनादि काल से निरन्तर मोहनीय कर्म को बांधते रहते हैं, यह लोक की तीसरी स्थिति है । ऐसा कभी नहीं हुआ है, न होता है और न होगा किजीव अजीव हो जायेंगे अथवा अजीव जीव हो जावेंगे । यह लोक की चौथी स्थिति है । ऐसा कभी नहीं हुआ है, न होता है और न होगा कि त्रस प्राणियों का सर्वथा व्यच्छेद (अभाव) हो जायगा ।
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