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स्थान ९
२८५ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिंसुवा, धिणंति वा, चिणिस्संति वा पुढविकाइय णिव्यत्तिए जाव पंचिंदियणिव्वत्तिए एवं चिण उवचिण जाव णिज्जरा चेव । णव पएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता । णव पएसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता जाव णवगुण लुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता॥११३॥
॥णवमं ठाणं समत्तं ॥णवमं अज्झयणं समत्तं ॥ कठिन शब्दार्थ- पच्छंभागा - पश्चाद् भोग वाले, कोसलिए - कौशलिक-कौशल देश में उत्पन्न, वीहीओ - वीथियाँ-क्षेत्र भाग, वेसाणरवीही- वैश्वानर वीथी, णोकसायवेयणिजे कम्मे - नोकषाय वेदनीय कर्म, दुगुच्छे - दुर्गुच्छा-जुगुप्सा।
___ भावार्थ - नौ नक्षत्र चन्द्रमा के पश्चाद्भोग वाले कहे गये हैं अर्थात् चन्द्रमा इनका उल्लंघन करके फिर भोग करता है । उनके नाम इस प्रकार हैं - अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, रेवती, अश्विनी, मृगशिर, पुष्य, हस्त और चित्रा ये नौ नक्षत्र पश्चाद्भोग वाले हैं । आणत, प्राणत, आरण, अच्युत इन देवलोकों में विमान नौ सौ योजन के ऊंचे कहे गये हैं । विमलवाहन कुलकर के शरीर की ऊंचाई नौ सौ धनुष थी । इस अवसर्पिणी काल के नौ कोडाकोडी सागरोपम व्यतीत होने पर कौशल देश में उत्पन्न ऋषभदेव भगवान् ने तीर्थ प्रवर्ताया था । घनदन्त, लष्ठदन्त गूढदन्त, और शुद्धदंत ये चार अन्तरद्वीप नौ सौ नौ सौ योजन के लम्बे चौड़े कहे गये हैं । शुक्र महाग्रह की नौ वीथियां यानी क्षेत्र भाग कहे गये हैं। यथा - हय वीथी, गज वीथी, नाग वीथी, वृषभ वीथी, गो वीथी, उरग वीथी, अज वीथी मृग वीथी और वैश्वानर वीथी । नोकषाय वेदनीय कर्म नौ प्रकार का कहा गया है । यथा - स्त्री वेद, पुरुष वेद, नपुंसक वेद, हास्य, रति, अरति, भय, शोक और दुर्गच्छा - जुगुप्सा । चतुरिन्द्रिय जीवों की नौ लाख कुलकोटि कही गई है । भुजपरिसर्प स्थलचर तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय जीवों की नौ लाख कुलकोटि कही गई हैं । सब जीवों ने पृथ्वीकाय निर्वर्तित यावत् पञ्चेन्द्रिय निर्वर्तित इन नौ स्थान निर्वर्तित पुद्गलों को पाप कर्म रूप से उपार्जन किये हैं, उपार्जन करते हैं और उपार्जन करेंगे । इसी प्रकार चय, उपचय यावत् निर्जरा तक कह देना चाहिए । नौ प्रदेशी स्कन्ध अनन्त कहे गये हैं । नौ प्रदेशावगाढ पुद्गल अनन्त कहे गये हैं । यावत् नौ गुण रूक्ष पुद्गल अनन्त कहे गये हैं ।
॥नववां स्थान समाप्त ॥
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॥नववाँ अध्ययन समाप्त ॥ . .
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