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________________ २६४ श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 अग्रमहिषियाँ, लोकान्तिक देव, अवेयक विमान . ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो वरुणस्स महारण्णो णव अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ । ईसाणस्स णं देविंदस्स देवरण्णो अग्गमहिसीणं णव पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता । ईसाणे कप्पे उक्कोसेणं देवीणं णव पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । णव देवणिकाया पण्णत्ता तंजहा सारस्सय माइच्चा, वण्ही वरुणा य गहतोया य। तुसिया अव्वाबाहा, अग्गिच्चा चेव रिट्ठा य ॥१॥ अव्वाबाहाणं देवाणं णव देवा णव देव सया पण्णत्ता । एवं अग्गिच्चा विं, एवं रिद्वा वि । णव गेविज्ज विमाण पत्थडा पण्णत्ता तंजहा - हेट्टिमहेट्ठिम गेविज्ज विमाणपत्थडे, हेट्ठिम मज्झिम गेविज विमाणपत्थडे, हेट्ठिम उवरिम गेविज विमाणपत्थडे, मज्झिम हेट्ठिम गेविग्ज विमाण पत्थडे, मज्झिम मज्झिम गेविज्ज विमाण पत्थडे, मज्झिम उवरिम गेविग्ज विमाण पत्थडे, उवरिम हेट्ठिम गेविजविमाण पत्थडे, उवरिम मज्झिम गेविग्ज विमाणपत्थडे, उवरिम उवरिम गेविजविमाणपत्थडे । एएसि णं णवण्हं गेविज्ज विमाण पत्थडाणं णव णामधिज्जा पण्णत्ता तंजहा - . भद्दे सुभद्दे सुजाए, सोमणसे पियदंसणे । सदसणे अमोहे य, सुप्पबुद्धे जसोहरे ॥ २॥ १०७॥ कठिन शब्दार्थ- देवणिकाया - देवनिकाय, अव्वाबाहाणं - अव्याबाध देवों के, गेविज विमाण पत्थडा - ग्रैवेयक विमान प्रस्तट, हेट्ठिमहेट्ठिम - अधस्तन अधस्तन, हेटिममझिम - अधस्तन मध्यम, हेट्ठिमउवरिम - अधस्तन उपरिम, मज्झिमहेट्ठिम - मध्यम अधस्तन, मज्झिममज्झिम - मध्यम मध्यम, मझिम उवरिम - मध्यम उपरिम, उवरिम हेट्ठिम - उपरिमअधस्तन, उवरिममज्झिम - उपरिम मध्यम, उवरिमउवरिम - उपरिम उपरिम। भावार्थ - देवों के राजा देवों के इन्द्र ईशानेन्द्र के वरुण नामक लोकपाल के नौ अग्रमहिषियाँ कही गई हैं। देवों के राजा देवों के इन्द्र ईशानेन्द्र की अग्रमहिषियों की नौ पल्योपम की स्थिति कही गई है। ईशान देवलोक में परिगृहीता देवियों की उत्कृष्ट स्थिति नौ पल्योपम की कही गई है। नौ देवनिकाय कहे गये हैं यथा - सारस्वत, आदित्य, वहि, वरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध, आग्नेय और रिष्ठ। इन में से पहले के आठ देवनिकाय आठ कृष्ण राजियों में रहते हैं। रिष्ठ नामक देवनिकाय कृष्ण राजियों के बीच में रिष्टाभ नामक विमान के प्रत्तर में रहते हैं। अव्याबाध देवों के नौ देव और नौ सौ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004187
Book TitleSthananga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2008
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size8 MB
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