________________
प्रचलित हुआ ।
0000
७. वादी - शास्त्रार्थ में निपुण जिसे दूसरा न जीत सकता हो, अथवा मन्त्रवादी या धातुवादी । ८. भूतिकर्म - ज्वर आदि उतारने के लिए भभूत (राख) आदि मन्त्रित करके देने में निपुण । ९. चैकित्सिक - चिकित्सा में निपुण वैदय आदि ।
श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के नौ गण हुए थे यथा - गोदास गण, उत्तरबलिसह गण, उद्देह गण, चारण गण, उद्दवाइ गण, विश्ववादी गण, कामर्द्धि गण, माणव गण, कोटिक गण । श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए नौ कोटि परिशुद्ध भिक्षा कही है यथा साधु आहारा के लिए किसी जीव की हिंसा न करे, दूसरे द्वारा हिंसा न करावे, हिंसा करते हुए का अनुमोदन न करे अर्थात् उसे भला न समझे। आहार आदि स्वयं न पकावे, दूसरे से न पकवावे, पकाते हुए का अनुमोदन न करे। स्वयं न खरीदे, दूसरों न खरीदवावे, खरीदते हुए का अनुमोदन न करे । ये सभी कोटियाँ मन, वचन और काया रूप तीनों योगों से हैं। निर्ग्रन्थ साधु को इन नौ कोटियों से विशुद्ध आहार आदि लेना चाहिए।
विवेचन - गण - जिन साधुओं की क्रिया और वाचना एक सरीखी हो उन्हें गण कहते हैं। भगवान् महावीर के नौ गण थे -
१. गोदास गण
गोदास भद्रबाहु स्वामी के प्रथम शिष्य । इन्हीं के नाम से पहला गण
-
स्थान ९
-
२. उत्तरबलिस्सह गण उत्तरबलिस्सह स्थविर महागिरि के प्रथम शिष्य थे। इनके नाम से भगवान् महावीर का दूसरा गण प्रचलित हुआ ।
३. उद्देह गण ४. चारण गण ५. उद्दवाइ गण ६. विश्ववादी गण ७. कामर्द्धि गण ८. मानव गण ९. कोटिक गण ।
भिक्षा की नौ कोटियाँ - निर्ग्रन्थ साधु को नौ कोटियों से विशुद्ध आहार लेना चाहिए।
११. साधु आहार के लिए स्वयं जीवों की हिंसा न करे ।
२. दूसरे द्वारा हिंसा न करावे ।
३. हिंसा करते हुए का अनुमोदन न करे, अर्थात् उसे भला न समझे ।
४. आहार आदि स्वयं न पकावे ।
५. दूसरे से न पकवावे ।
६. पकाते हुए का अनुमोदन न करे ।
७. स्वयं न खरीदे।
Jain Education International
८. दूसरे को खरीदने के लिये न कहे।
९. खरीदते हुए किसी व्यक्ति का अनुमोदन न करे ।
ऊपर लिखी हुई सभी कोटियाँ मन, वचन और काया रूप तीनों योगों से हैं ।
२६३
-
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org