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स्थान ९
२४९
भावार्थ - नौ कारणों से किसी सम्भोगी साधु को विसम्भोगी यानी अपने सम्भोग से अलग करने वाला श्रमण निर्ग्रन्थ तीर्थकर भगवान् की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता है । यथा - आचार्य से विरुद्ध चलने वाले साधु को, उपाध्याय से विरुद्ध चलने वाले साधु को, स्थविर से विरुद्ध चलने वाले साधु को, साधु कुल से विरुद्ध चलने वाले को, साधुगण से प्रतिकूल चलने वाले को, संघ से प्रतिकूल चलने वाले को, ज्ञान से विपरीत चलने वाले को, दर्शन से विपरीत चलने वाले को, चारित्र से विपरीत चलने वाले को । इन उपरोक्त कारणों का सेवन करने वाले प्रत्यनीक कहलाते हैं ।
आचाराङ्ग सूत्र के ब्रह्मचर्य नामक प्रथम श्रुतस्कन्ध के नौ अध्ययन कहे गये हैं । यथा - शस्त्रपरिज्ञा, लोकविजय, शीतोष्णीय, सम्यक्त्व, आवंती, केआवंती, धूत, विमोक्ष, उपधानश्रुत और महा परिज्ञा । ब्रह्मचर्य गुप्तियाँ - ब्रह्म अर्थात् आत्मा में, चर्या अर्थात् लीन होना, ब्रह्मचर्य कहलाता है । सांसारिक विषय वासनाएं जीव को आत्म चिन्तन से हटा कर बाह्य विषयों की ओर खींचती हैं, उनसे बचने का नाम ब्रह्मचर्य गुप्ति है । वे ब्रह्मचर्य गुप्तियां नौ कही गई हैं । यथा - १. ब्रह्मचारी को स्त्री, पशु और नपुंसक से रहित एकान्त स्थान और आसन का सेवन करना चाहिए । २. स्त्रियों की कथा वार्ता न करे अर्थात् अमुक स्त्री सुन्दर है या अमुक देश वाली स्त्री ऐसी होती है, इत्यादि बातें न करे । ३. स्त्री के साथ एक आसन पर न बैठे। ४. स्त्रियों के मनोहर और मनोरम अङ्गों को न देखे, यदि .अकस्मात् दृष्टि पड़ जाय तो तुरन्त दृष्टि को फेर ले। ५. जिसमें से घी टपक रहा हो ऐसा.पक्वान्न या गरिष्ठ भोजन न करे । ६. रूखा सूखा भोजन भी अधिक न करे । ७. पहले भोगे हुए भोगों का स्मरण न करे । ८. स्त्रियों के शब्द, रूप और प्रशंसा आदि पर ध्यान न दे। ९. पुण्योदय के कारण प्राप्त हुए अनुकूल वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श आदि के सुखों में आसक्त न होवे । ये ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियां है । इनका पालन करने से ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है । इनके विपरीत ब्रह्मचर्य की नौ अगुप्तियां कही गई हैं। यथा - स्त्री, पशु नपुंसक युक्त स्थान और आसन आदि का सेवन करे । स्त्रियों की कथा वार्ता करे। स्त्रियों के साथ एक आसन पर बैठे । स्त्रियों के मनोहर और मनोरम अङ्गों को देखे । गरिष्ठ आहार करे । परिमाण से अधिक भोजन करे । पहले भोगे हुए भोगों का स्मरण करे । स्त्रियों के शब्द, रूप
और प्रशंसा आदि पर ध्यान देवे । साता और सुखों में आसक्त होवे । ये ब्रह्मचर्य की अगुप्तियाँ हैं। इनका सेवन करने से ब्रह्मचर्य का नाश होता है ।
विवेचन - प्रश्न - संभोग किसे कहते हैं ?
उत्तर - समान समाचारी वाले साधु साध्वियों के सम्मिलित आहार, वंदन आदि व्यवहार को संभोग कहते हैं। - संभोगी को विसंभोगी करने के नौ स्थान - नौ कारणों से किसी साधु को संभोग से अलग करने वाला साधु जिन शासन की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता।
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